नया सबेरा नेटवर्क
मर रहे सबके सपने, हे! ईश्वर,न मरने दे,
संसार जैसा चल रहा था वैसे चलने दे।
कोई अब न मरे ऐसी भीषण महामारी से,
चीख-चीत्कार से हैं सब उदास, हँसने दे।
लोग निकलें घरों से और वो काम पे लौटें,
कल-कारखानों की जवानी को रवानी दे।
थक गए कांधे, मैय्यत को कांधा देते -देते,
लोग हंसें, बोलें, उन्हें बाहर चाँद देखने दे।
वीरान हुई दुनिया,वो वीरान हुआ आसमां,
लोगों को नील गगन में फिर से उड़ने दे।
आत्मा का सूरज डूब गया,तो क्या पाएगा,
फिर से हरेक को उसके पांव खड़े होने दे।
क्या गंवाई, क्या पाई, ये सोचेगी दुनिया,
सर्व प्रथम उन्हें जख्मों की तुरपाई करने दे।
मौत की आंधी जो चल रही,रोक मेरे मौला,
प्यार की जमीं पे मोहब्बत की नदी बहने दे।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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