लोकतंत्र और मीडिया में परस्पर पूरकता... | #NayaSaberaNetwork

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नया सबेरा नेटवर्क
किसी भी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं शासन प्रणाली में मीडिया सजग प्रहरी की भूमिका में होती है। लोकतंत्र और मीडिया दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं। इनमें से किसी एक का संतुलित व्यवहार दूसरे को स्वमेव ही स्वस्थ रखता है किन्तु कुछ संदर्भों में जैसे-देश की आंतरिक जनसमस्याओं को छोड़कर गैरजरूरी अथवा अप्रासंगिक मुद्दों पर लाइव डिबेट आयोजित करना, कर्मचारियों के हित में पुरानी पेंशन प्रणाली व अति तीव्र निजीकरण पर मीडिया में कोई खास चर्चा नहीं, जन आंदोलनों की छवि देशद्रोही, देश विरोधी और विदेशी फंडिंग आदि नकारात्मक शब्दावलियों के सहारे धूमिल करना, चुनावों में हिंदू-मुस्लिम दृष्टिकोण उत्पन्न कर देने की कला, किसी प्रायोजित मुद्दे को कई दिनों तक दिखाते रहना, राजनीतिक मंच से किसी नेता के चुनाव प्रचार को अपने अन्य जरूरी कार्यों एवं खबरों को छोड़कर लाइव दिखाना इत्यादि गतिविधियां मीडिया की मूल कर्तव्य भावना एवं निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं और प्रेस की स्वतंत्रता को स्वछंदता के रूप में दर्शाती है। इन विकट परिस्थितियों और आपदा काल में मेन स्ट्रीम मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया अपने मुख्य कर्तव्य और अपनी भूमिका में कहां तक लाइव हैं? इस विषय पर चर्चा क्या अब समय की मांग है? विशेषज्ञ, डाक्टर्स, महामारी रोग विशेषज्ञ, विभिन्न क्षेत्रों के संबंधित विशिष्ट मंत्री और सचिवों, कोरोना वारियर्स इत्यादि को लाइव दिखाने में सकारात्मकता की जरूरत है न कि व्यक्ति पूजा और संगठन भक्ति में लीन होकर लाइव रहना है। भारतीय संविधान द्वारा प्रदत नागरिक मूल अधिकारों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद-19) सबसे महत्वपूर्ण मूल अधिकार है। इस मूल अधिकार के व्यापक उद्देश्यों में यह नहीं शामिल है कि मीडिया केवल व्यावसायिक दृष्टिकोण से और सरकारों/सत्ता के अनुकूल व्यवहार करे। मीडिया में व्याप्त संकीर्णता, एकपक्षीय दृष्टिकोण से कुतर्क, मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने वाली खबरों पर जोर देना इत्यादि नकारात्मक प्रवृतियां लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करती हैं। व्यक्ति पूजा अथवा महामानव की अवधारणा लोकतंत्र के लिए खतरा है और अधिनायकवादी शासन प्रणाली को बढ़ावा देता है। लोकतंत्र में सभी व्यक्तियों की गरिमा और अधिकार बराबर के होते हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों जैसे स्वतंत्रता, समानता, नागरिक अधिकारों, धर्मनिरपेक्षता न्यायपूर्ण सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था इत्यादि की सुरक्षा के लिए मीडियाकर्मियों की भूमिका चौकीदार की तरह होती है। राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर जन नियंत्रण, नागरिक अधिकारों और नागरिकता की अवधारणा जैसे विषयों पर विमर्श की आवश्यकता है, क्योंकि इन्हीं तत्वों से मीडिया में भी सकारात्मक सुधार संभव है। मीडिया लोकतंत्र में महत्वपूर्ण व मजबूत स्तंभ होता है। जिस देश में प्रेस की स्वतंत्रता के बावजूद प्रेस सत्ता की भाषा बोलने लगती है अथवा एकपक्षीय होने लगती है तो उस देश में लोकतांत्रिक राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था को फेल होने में बहुत देर नहीं लगती (म्यांमार, पाकिस्तान,चीन आदि देश इसके उदाहरण हैं जहां सत्ता/सेना के दबाव अथवा सेंसरशिप से मीडिया कमजोर हुई और अंततः लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास हुआ), क्योंकि मीडिया ही जनमत निर्माण एवं जन जागरूकता का सशक्त साधन होती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था को चलाने के लिए राजनीतिक दल अनिवार्य है। खास तौर से जनसंख्या के बड़े आकार वाले देशों में। प्रत्येक राजनीतिक दल की अपनी विचारधारा और समर्थकों का समूह होता है जिसके आधार पर वह समस्याओं के समाधान का दावा करते हैं और ऐसा ही दावा सभी राजनीतिक दल करते हैं। राजनीतिक दल अथवा संगठन बनाना प्रत्येक भारतीय नागरिक के मूल अधिकारों (अनुच्छेद 19) में शामिल है किंतु आजादी के बाद भारत में संगठनात्मक आधार विस्तृत करने के लिए राजनीतिक दलों ने संप्रदायवाद, भाषावाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, राजनीति का जातीयकरण और जाति का राजनीतिकरण, अपराधियों को चुनाव लड़ाना, बाहुबल, नोट के बदले वोट जैसे नकारात्मक साधनों का प्रयोग तेजी से किया। राजनीतिक दलों की इन नकारात्मक गतिविधियों को ऊर्जा देने का काम हमारे देश में व्याप्त गरीबी, अशिक्षा, अभाव, भय, भूख, भ्रष्टाचार और जागरूकता की कमी ने किया है। यह नकारात्मक गतिविधियां आज भी विकट रुप में विद्यमान हैं। 21वीं सदी के लोकतांत्रिक भारत का यह दुर्भाग्य है कि हमारा सिस्टम आज भी सभी व्यक्तियों को शिक्षित (केवल साक्षर ही नहीं, बल्कि समझदार) नहीं कर पाया और विश्व की अन्य देशों की तुलना में भारत मानव विकास सूचकांक में बहुत पीछे है। मीडिया की सकारात्मक भूमिका और जनजागरूकता द्वारा राजनीतिक दलों की इन नकारात्मक गतिविधियों में कमी लाकर लोकतांत्रिक मूल्यों को और भी सुदृढ़ किया जा सकता है। मीडियाकर्मियों को हेडलाइंस मैनेजमेंट वाले दृष्टिकोण से बाहर आकर वास्तविकता और निष्पक्षता से नागरिक अधिकारों और सुविधाओं का संरक्षण, संवर्धन और सशक्तिकरण करते रहना है जिससे हमारा देश और भी सशक्त बने।
डा. कर्मचन्द यादव
असिस्टेंट प्रोफेसर
राजनीति विज्ञान, जौनपुर।

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