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देश की संस्कृति देवों की आत्मा
जिसने धरती का सुन्दर सृजन है किया
भूमि जन संस्कृति तीनों जब मिल गए
धर्म निरपेक्ष एक राष्ट्र भारत दिया।
बलीवती होगी जब प्रेम की भावना
राष्ट्र सरसिज सरिस रूप खिल जाएगा
सिद्धि नव निधि से पूरित है धरती मेरी
विश्व गुरु राष्ट्र गौरव का पद पाएगा।
धातु औ रत्न जो थे यहाँ पर पड़े
धरती के गर्भ में मिलता पोषण सदा
मेघ करते हैं सिंचित सदा से इन्हें
करती श्रृंगार इसका प्रकृति सर्वदा।
सच्चे अर्थों में है भूमि माता मेरी
नित्य प्रति धरती माता का वन्दन करे
जन के कारण विभूषित धरा नाम से
पुत्र बन हम सभी प्रेम अर्पन करें।
राष्ट्र का तीसरा रूप सुन्दर अमल
संस्कृति देश की शीर्ष पहचान है
पुष्प हैं संस्कृति वृक्ष जीवन सरिस
उल्लसित दोनो जो कर्म अरू ज्ञान है
धर्म भाषा विविध वेशभूषा पृथक
भिन्न होकर यहां संस्कृति एक है।
सूर्य की रश्मियां अपने आलोक से
देती संदेश नित हम सभी एक हैं।
विश्व के शान्ति की कामना जिसने की
भारतीय संस्कृति विश्व प्रतिमान है
चर-अचर जीव निर्जीव प्रतिरूप जो
श्रेष्ठ भारत का करते वे गुणगान हैं।
रचनाकार- डॉ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार
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