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कितनी बेबस हैं, बेकफ़न सांसें,
आक्सीजन बिना,परेशान सांसें।
सांस के लिए बेच रहे घर,जेवर,
तब भी वो नहीं बच रही सांसें।
बिछाए हैं जाल मौत के सौदागर,
उनके लिए कितनी रंगीन सांसें।
भूखे भेड़ियों से बचाएगा कौन?
उनके लिए कितनी हसीन सांसें।
मौके का फ़ायदा उठाने वालों!
निकलेंगी तेरी दिल -नसीन सांसें।
सांसों का खर्चा जहां में है भारी,
बचा लो तू अपनी महीन सांसें।
जलवा फिर देखेगी दुनिया का ये,
होकर रहेंगी ये फिर जवान सांसें।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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