नया सबेरा नेटवर्क
मुंबई: हिंदी लघुकथा के विभिन्न बिंदुओं पर ऑनलाइन चर्चा के लिए अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच द्वारा एक दिवसीय ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन किया गया । उद्वघाटन- राम राय नेकिया।सरस्वती वंदना - अलका पाण्डेय और मीना परिहार ने किया।स्वागत गीत शोभा रानी तिवारी ने प्रस्तुत किया।कार्यशाला के प्रमुख वक्ता डॉ पुरुषोतम दुबे तथा विशेष वक्ता - सेवा सदन प्रसाद रहे।कार्यक्रम का संचालन -डॉ अलका पाण्डेय ,सुरेन्द्र हरड़ें ने किया ।आभार व्यक्त किया हेमा जैन ने किया क़रीब साठ लघुकथा कारों ने लाभ लिया । आज लघुकथाओं का दौर है। लघुकथा एक सशक्त विधा के रूप में न सिर्फ स्थापित हो रहा अपितु कामयाबी के झंडे भी गाङ रहा है। सीमित शब्दों में सुंदर शिल्प के सहारे अपनी पूरी बात को कलमबद्ध कर देना ही लघुकथा की सार्थकता है। परिवार, समाज एवं देश में रिश्तों में दरार, संवेदनाओं की मौत, अन्याय के विरुद्ध खामोशी आदि ऐसे ज्वलंत प्रश्न हैं, जिसे लघुकथा का रूप देकर लोगों में चेतना जागृत करना उन्हें कर्तव्यबोध का अहसास कराना, संवेदनाओं को जगाना अति आवश्यक है। लघुकथा का अर्थ लघु ( छोटा) पर कथा ( कहानी) मौजूद हो।इसमें चार शब्द हैं। ये चार पायदान ही इसे मजबूती प्रदान करता है---शीर्षक प्रभावशाली एवं आकर्षक हो जो पाठकों को पढने पे विवश कर दे।शिल्प एवं शैली सटीक , हो,अनावश्यक विस्तार या कहानी की तरह भूमिका न हो।कथ्य संदेशात्मक, प्रेरणात्मक एवं मीमांसात्मक हो।लघुकथा का अंतिम पैरा जिसे ' पंच लाइन ' कहते हैं, जोरदार हो जो पाठक के मन को झकझोर कर रख दे।कुछ वरिष्ठ लघुकथाकारों का कहना है कि एक सशक्त लघुकथा जहां खत्म होती है, वहीं से एक नई लघुकथा जन्म लेती है।
लघुकथा लिखते समय निम्न सावधानियां अवश्य बरतें , लघुकथा को चुटकुला न बनने दें। मर्यादित भाषा एवं सकारात्मक परिवेश के अंतर्गत ही लघुकथा का निर्माण हो। अनावश्यक एवं बेफजूल शब्दों का उपयोग न हो।बस गागर में सागर और एक बूंद में महासागर वाली बात होजरूरत हो तो संवादों के सहारे भी लघुकथा लिखी जा सकती है।भारी - भरकम एवं क्लिष्ट शब्दों का उपयोग न करें। लघुकथा चूंकि एक विशेष पल को उजागर करने वाली एकांगी रचना होती है, अतः काल - खंड का दोष नही होना चाहिए।एक से अधिक घटनाओं का समावेश न हो।लघुकथा प्रवचन, रिपोर्टिंग, संस्मरण न बनने पाये , लघुकथा पढने के बाद पानी में पत्थर फेंकने सी ध्वनि हो,भीङ में बच्चे की खनक सी सुनाई पङे,भूख की रूदन सुनाई पङे,आक्रोश की आग में उठती धुएं की लकीर का अहसास हो , लघुकथा लेखन में यथार्थ के साथ- साथ कल्पना का होना भी जरूरी है। बिम्बों एवं प्रतीकों से भी लघुकथा की रचना हो सकती है। लघुकथा को बोध-कथा न बनने दें। लघुकथा की कोई तय शब्द- सीमा नहीं है पर संक्षिप्त हो।यह जानकारी कार्यशाला में प्राप्त हुई ।इससे सबको बहुत लाभ मिला।
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