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वेदों ने जिसकी महिमा का गायन किया
सृष्टि चलने का जो एक आधार है
धर्म का निर्वहन धरती पर करती जो
ब्रह्मा भी सामने जिनके लाचार है।
माँ जगतजननी सीता से अनुसूइया ने
लोक हित धर्म नारी का वर्णन किया
प्राणों से भी अधिक स्नेह था राम से
सीता का इसलिए जग ने वन्दन किया।
मातु पितु भ्रातृ होते हितैषी सदा
संग परिवार भी करते कल्याण हैं
सीमा से सब बंधे मुक्त पति हैं सदा
पति की सेवा से ही मिलता निर्वाण है।
मित्र धीरज धरम और नारी की ही
होती इनकी परीक्षा है आपत्ति में
चार पुरुषार्थ होते जगत में सदा
भाव जीवन भरा चार की शक्ति में।
रोगी धनहीन जड़ अंध क्रोधी बधिर
वृद्ध अतिदीन भी है पती गर मिला
करती अपमान ऐसे भी पति का कोई
नारी जमपुर में दुख झेलती हैं गिला।
धर्म अरू कर्म नारी का बस एक है
मन बचन काया से सेवा पति की करे
देवता यश भी उनका है गाते सदा
ऐसी नारी से त्रय ताप खुद हीं डरे।
जग में उत्तम वही नारियां होती हैं
स्वप्न में पर पुरुष को नहीं देखती
नारी मध्यम है जो जानती परपुरूष
पुत्र भ्राता पिता रूप में मानती।
कुल की मर्यादा औ धर्म को मानकर
पतिव्रता भय के कारण बनी रहती हैं
चाहती तो हैं पर मिलता अवसर नहीं
ऐसी स्त्री अधम नारि कहलाती हैं।
पति की कर वंचना परपुरूष प्रेम कर
पाती रौरव नरक शत कलप नारियां
सुख क्षणिक पाने को कोटि जन्मों तलक
दुख समझती नहीं दुष्टा हैं स्त्रियां।
पति के प्रतिकूल जीवन बिताती हैं जो
जन्म दूजा तरूण विधवा हो जाती है
सेवा में पति के जीवन बिताती हैं जो
श्रम किए भक्ति बिन सद्गगती पाती है।
रचनाकार- डॉ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार
सम्पर्क सूत्र 9918357908
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