जंगलों में और खेतों में तैयार खड़ी फसलों में, आग लगना चिंता का विषय - अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंथन जरूरी | #NayaSaberaNetwork

जंगलों में और खेतों में तैयार खड़ी फसलों में, आग लगना चिंता का विषय - अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंथन जरूरी | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
जंगलों और फसलों में आग से पर्यावरण व किसानों को भारी क्षति - रणनीति बनाना जरूरी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - वैश्विक स्तर पर अनेक समस्याएं होती है, जो किसी एक देश, राज्य या व्यक्ति के लिए नहीं होती बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए होती है जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मिट, सम्मेलन होते हैं। जिसमें उस विषय पर वैश्विक स्तर के नेता, विशेषज्ञ व बड़े अधिकारी शामिल होते हैं और विचारविमर्श कर रणनीति और उसका रोडमैप तैयार किया जाता है। जैसे जलवायु परिवर्तन शिखरसम्मेलन  महामारी, मानवाअधिकार, इसके अनेक विषय हैं।... बात अगर हम अनेक देशों में जंगलों में आग लगने की करें तो यह घटनाएं अभी हालके कुछ वर्षों या दशकों में काफी बढ़ी हुई अवस्था में हैं। पहले इस तरह की घटनाएं कम सुनने को मिलती थी परंतु आज के परिवेशमें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा कुछ ही क्षणों में जंगलों में लगी आग का प्रसारण दिखाया जाता है और उसे बुझाने की व्यवस्था कैसी हो रही है यह भी दिखाया जाता है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे पूरी तरह विकसित देशों के जंगलों में भी मीडिया के माध्यम से भयंकर आग का मंजर जो महीनों से शुरू रहता है टेलीविजन के माध्यम से हम सभी देखते हैं।...बात अगर हम भारत की करें तो यहां भी जंगलों में आग के समाचार आते रहते हैं। परंतु वर्तमान समय में उत्तराखंड राज्य में जो आग जंगलों में लगी है वह काफी भयंकर रूप से लगी है जिसका  नजारा टेलीविजन के माध्यम से दिखाया जा रहा है। आग को बुझाने हेलीकॉप्टर की भी सहायता ली जा रही है। वन विभाग व स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकार आग बुझाने में पूरा प्रयास कर रहे हैं। जबकि वर्तमान समय में उत्तराखंड के हरिद्वार में कुंभ का मेला लगा हुआ है। स्वाभाविक रूप से वहां पूरे भारत भर के नागरिकों का आना जाना शुरू है। आने वाले 13 अप्रैल को बैसाखी व अन्य त्योहार हैं जिसमें लोग कुंभ मेले में स्नान करना शुभ मानते हैं जिसके कारण भारी मात्रा में  लोगों का उत्तराखंड पहुंचना जारी है। हालांकि उत्तराखंड सरकार भारी बंदोबस्त व प्रोटोकॉल का पालन करना,हर दर्शनार्थी का टेस्ट तथा 72 घंटे पूर्व का टेस्ट रिपोर्ट देखा जाता है इत्यादि अनेक प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है फिर भी उत्तराखंड में लगी आग के बारे में हम कहे तो, उत्तराखंड के जंगल पिछले कई दिनों से धू-धूकर जल रहे हैं। जंगल में लगी आग इतनी भीषण है जिसे बुझाने के लिए उत्तराखंड सरकार ने केंद्र सरकार से मदद मांगी है। आग पर काबू पाने के लिए वायुसेना के हेलिकॉप्टर तैनात किए गए हैं। कुमाऊं और गढ़वाल दोनों क्षेत्रों को मिलाकर लगभग 40 से ज्यादा जगहों पर आग लगी हुईहै।इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अनुसार उत्तराखंड में कोटद्वार में एसजीआरआर इंटर कॉलेज जंगल भी आग में खाक हो गया है। घटना शुक्रवार देर रात की है वहीं शनिवार को भी नैनीताल मार्ग बेलूकरवान के पास जंगलों की आग की लपटों में आकर पेड़ों का रास्तों पर गिर कर रास्ता बंद हो गया है। इस तरह वन संपदा का भारी मात्रा में नुकसान हुआ है। दो दिन पूर्व हमारे गोंदिया  के पांगढ़ी के जंगलों में भी आग लगी जिसमें दो मजदूरों की मृत्यु हुई थी। इसी प्रकार की हजारों घटनाएं जंगलों में आग लगने की होती रहती है।.. वही बात अगर हम खेतों में तैयार खड़ी फसलों की करें तो वर्तमान में कई राज्यों में कई जगहों, स्थानों में गेहूं की खड़ी फसल में आग के कारण किसानों का भारी नुकसान हुआ है। जिसमें यूपी के कुशीनगर व पंजाब के कई शहर शामिल है। खेतों के ऊपर  इलेक्ट्रिक वायर, कोईव्यक्ति बीड़ी सिगरेट जलाकर तीली फेंकने, कृषि मशीनों के चलने से स्क्रैप निकलने इत्यादि अनेक कारणों से आग लग जाती है और किसानों के महीनों की मेहनत पर पानी फिर जाता है जो काफी दुर्भाग्यपूर्ण बात है।.. बात अगर हम इन जंगलों में और खेतों में खड़ी फसलों में लगी आग में पर्यावरण का नुकसान की बात करें तो यह पूरे वातावरण के लिए बेहद नुकसान देह है और भारतीयों के स्वास्थ्य को भारी क्षति पहुंचाने में अहम भूमिका अदा करता है। वैसे भी कुछ महीने पूर्व की बात करें तो दिल्ली सहित अनेक राज्यों के शहरों में वातावरण प्रदूषण की तीव्र समस्या उठी थी। जिसमें माननीय न्यायपालिकाओं को भी याचिकाओं के हस्ते हस्तक्षेप करना पड़ा था। बात अगर हम जंगलों में और खेतों में खड़ी फसलों में आग की अंतरराष्ट्रीय स्तर की बात करें तो यह वैश्विक समस्या है न कि सिर्फ भारत की। विश्व में अनेक विकसित देशों में भी जंगलों में आग का विकराल रूप हम टीवी चैनलों के द्वारा देखते और सुनते आ रहे हैं अतः जरूरत है इस विषय का समाधान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंतरराष्ट्रीय सम्मिट फॉर साल्वेशन द बर्निंग फॉरेस्ट या कोई अन्य ऐसा अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाकर इसको निवारण संबंधी तकनीको पर विचार किया जाए तथा इसकी अंतरराष्ट्रीय नियमावली बनाई जाए तथा वैश्विक रूप से बने हुए अंतरराष्ट्रीय संगठन के सदस्य एक दूसरे को आग लगने की स्थिति में सहायता प्रदान करें। शासन से निवेदन है कि इस मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए रणनीतिक प्रक्रिया शुरू करें।
-संकलनकर्ता लेखक कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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