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हे पवन तनय कपीश कृपा निधान प्रभु अतुलित बलं।
श्री राम सीय समेत लखन बसहि सदा जेहिं हृदि वरं।।
अवतार जेहिं कर राम काज भयो मुदित धरनी धरं।
सोई जानकी प्रिय परम सुत हनुमान नित जग वन्दितं।।
संकट र्पयो रविसुत सुकंठ सो रक्ष ताहिं अभय कियो।
प्रभु सन मिलाई कराई प्रीति सो राज सिंहासन दियो।।
प्रभु चरण वन्दि कपीश सीतहिं खोज हित लंका गयो।
पुर जारि खर्ब संहारि सीय अशीष लै प्रभु पहिं गयो।।
सिय विरह दारून देखि कपि संदेश सिय कर नहिं कहे।
दुख सीय समुझि श्रवत नयन प्रभु भालु कपि विलपत रहे।।
हनुमंत कह प्रभु विपति सोइ सुमिरन भजन तव नहिं रहै।
रिपु जीति निसिचर मारि, सीतहिं आनि प्रभु जस गाइहै।।
लंका समर महं इन्द्रजीत प्रहार लखनहिं पर कियो।
उर लागि शक्ति प्रचण्ड लक्ष्मण विकल होइ मूर्छित भयो।।
कपि जाई लंका आनि वैद्य सुखेन लइ प्रभु पहिं गयो।
संजीवनी लै आई जीवनदान लक्ष्मण कहं दियो।।
बैठे कुशासन भरत रघुपति जपत नयन श्रवत रह्यो।
बूड़त विरह महं भरत पहिं संदेश प्रभु कर कपि दियो।।
श्री राम चरित सुनाइ भरत प्रबोधि पुनि प्रभु पहिं गयो।
आयो सबहिं जब अवध महं मिलि पवनसुत हर्षित भयो।।
पावन परम हनुमान चरित सुभक्ति सहित जे गावहीं।
संकट कटै दुख दूर करि पुनि राम धाम सिधावही।।
हनुमान प्रभु सेवक प्रदीप चरित्र सुजस बखानही।
प्रभु क्षमहुं सब अपराध मम निज दास आपन जानहीं।।
रचनाकार- डॉ. प्रदीप कुमार दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार
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