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कार्यपालिका व न्यायपालिका के आदेशों का पालन करना हर नागरिक का कर्तव्य व बाध्यता - अवज्ञा पर नियमानुसार कार्यवाही ज़रूरी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत विश्वप्रसिद्ध सबसे बड़ा लोकतांत्रिक और संविधान के अनुसार चलने वाला देश है और यही इसकी खूबसूरती विश्वप्रसिद्ध है। हम सब जानते हैं कि भारत में अनेक संवैधानिक संस्थाएं, एजेंसियां, आयोग हैं जो अपने अपने कर्याअधिकार क्षेत्र में संवैधानिक अनुच्छेदों, सांसद व विधायका द्वारा बनाए गए कानूनों के आधार पर चलकर भारत में संवैधानिक ढांचे को मजबूती व बल प्रदान करते हैं यही इन संवैधानिक संस्थाओं की खूबसूरती भी है और नागरिकों का भी कर्तव्य बनता है कि इन संवैधानिक संस्थाओं को संविधान व कानूनों का पालनकरने,उनके अनुसार चलने में सहयोग व बाध्यता प्रदान करें परंतु यदि जिन पर जवाबदारी है और वह ही संविधान और कानूनों के अनुरूप नहीं चलेंगे तो बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी और जनता का विश्वास उठ जाएगा। अतः भारत में एक ऐसी कार्यप्रणाली और अनुशासन पूर्वक प्रक्रियाएं बनी हुई है जिसमें अगर कोई भी अधिकारी या लीडर चाहे कितना भी बड़ा क्यों ना हो अवज्ञा करने पर नियमों, विनियमों, कानूनों के फेरे में आ ही जाता है और फिर किए का कराया करना ही होता है। संविधान, नियमों व विनियमों, कानूनों की कोई अवज्ञा करता है तो मामला अदालतों की दहलीज तक जा पहुंचता है वह तो न्याय का मंदिर है, इंसाफ जरूर मिलता है... इस विषय पर आधारित एक मामला गुरुवार दिनांक 25 फरवरी 2021 को माननीय मद्रास हाईकोर्ट की माननीय सिंगल बेंच माननीय न्यायमूर्ति एम एस रामचंद्र राव की बेंच सम्मुख कंटेंप्ट केस क्रमांक 298/2020 के रूप में आया जहां हाईकोर्ट ने ही 12 अक्टूबर 2018 के एक रिट पिटिशन क्रमांक 37623/2018 के आदेश की जानबूझकर अवज्ञा धारा 10 से 12 कंटेंप्ट आफ कोर्ट एक्ट 1971 के रूप की जहां याचिकाकर्ता एक कृषि भूमि के बेदखली पर रोक के हाईकोर्ट के आदेश की जिला कलेक्टर, ज्वाइंट कलेक्टर तथा लैंडएक्विजिशन ऑफीसर को अवज्ञा का दोषी पाया गया, जिसमें माननीय बेंच ने अपने 15 पृष्ठों और 37 पॉइंटों के आदेश में पॉइंट नंबर 34 से 37 के अनुसार माननीय बेंच ने तीनों अधिकारियों को 12 सप्ताह (3 माह) की सामान्य कारावास तथा ₹2 हज़ार का जुर्माना तथा प्रत्येक अधिकारी याचिकाकर्ता को ₹10 हज़ार कास्ट आदेश प्राप्ति के 4 सप्ताह के भीतर देगा।हालांकि दी गई सजा का 6 सप्ताह के लिए निलंबन किया गया और अधिकारियों के सर्विस रिकॉर्ड में एक एडवर्स एंट्री की जाएगी कि कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश क्रमांक की जानबूझकर अवज्ञा की गई आगे आदेश काफी के अनुसार,मद्रास हाईकोर्ट ने एक जिला कलेक्टर और दो अन्य को कोर्ट के अवमानना का दोषी ठहराया, इसमें जिला कलेक्टर ने कोर्ट के उस न्यायिक आदेश की जानूबूझकर अवज्ञा की, जिसमें कुछ किसानों को उनकी कृषि भूमि से एक जलाशय बनाने के उद्देश्य से बेदखल करने पर रोक लगाने का आदेश दिया गया था। माननीय बेंच ने उन्हें तीन महीने के लिए साधारण कारावास की सजा सुनाई और 2 हज़ार रूपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया। बेंच ने निर्देश में आगे कहा कि वे प्रत्येक याचिकाकर्ता को 10, हज़ार रुपये मुआवजे के रूप में भुगतान करें। जिला कलेक्टर, संयुक्त कलेक्टर और प्रशासक, (पुनर्वास और पुन:स्थापन) और भूमि अधिग्रहण अधिकारी सह जिले के राजस्व विभागीय अधिकारी ने यह निर्देश दिया था।बेंच ने आदेश में कहा कि प्रतिवादी अधिकारी 12 अक्टूबर, 2018 को अदालत के आदेश की अवहेलना करते हुए आगे बढ़े और इस प्रक्रिया में कुछ भूमि को जब्त कर लिया, जिसके लिए मार्च 2019 में एक याचिका डाली गई थी। बेंच ने कहा कि, हालांकि पहले प्रतिवादी ने पैरा संख्या 6 के आधार पर दलील दी कि कभी भी याचिकाकर्ताओं को उनकी कृषि भूमि या आवास से निकालने का प्रयास नहीं किया गया था और जैसा कि याचिका में याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया है कि जमीनें खोदी गई हैं और याचिकाकर्ताओं की ओर से जो तस्वीरें दिखाई गई हैं, वे सब गलत हैं और यह याचिका भी सही नहीं है। पीठ ने आगे कहा कि जब याचिकाकर्ताओं ने न्यायिक आदेश की जानबूझकर अवज्ञा करने पर आपत्ति जताई, तो उन्हें प्रतिवादी द्वारा नियुक्त पुलिस द्वारा याचिकाकर्ता को धमकी दी गई।एकल पीठ ने अपने आदेश में जिला कलेक्टर द्वारा उठाए गए एक तर्क को भी खारिज कर दिया कि वह अक्टूबर 2018 में इस पद पर आसीन नहीं था और इस प्रकार, उसके पास उस समय न्यायालय द्वारा दिए गए आदेशों का पालन सुनिश्चित करने की कोई जिम्मेदारी नहीं थी।कोर्ट ने कहा कि,अक्टूबर, 2019 में प्रतिवादी को उक्त जिले का जिला कलेक्टर नियुक्त किया गया और जब याचिकाकर्ताओं की कृषि भूमि जलमग्न हो गई (इस बारे में नीचे विस्तार से चर्चा की गई है) तो इसका उल्लंघन रोकना जिला कलेक्टर का कर्तव्य है। बेंच ने आगे कहा कि सुधार और पुनर्वास अधिनियम, 2013 की धारा 31 के तहत मुआवजा, सुधार और पुनर्वास दिखाने वाले किसी भी दस्तावेज को प्रतिवादी दिखाने में असमर्थ है, जिसमें याचिकाकर्ताओं को उनके कृषि भूमि के अधिग्रहण के बदले में मुआवजा, सुधार और पुनर्वास के लिए भुगतान किया जाना था।बेंच ने कहा कि मेरे द्वारा विशेष रूप से सरकार की ओर से दलील देने वाले एस जी को पूछे गए एक विशेष प्रश्न पर, जो सुधार और पुनर्वास अधिनियम, 2013 की अनुसूची II की धारा 31 के तहत मुझे एक ऑवर्ड दिखाने के लिए अपर महाधिवक्ता कार्यालय से संलग्न है। उपरोक्त याचिकाकर्ताओं द्वारा उल्लिखित अधिसूचनाओं के तहत याचिकाकर्ताओं की कृषि भूमि के अधिग्रहण पर सुधार और पुनर्वास अधिनियम के तहत याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर की गई याचिका पर प्रतिवादी द्वारा दायर काउंटर एफिडेविट में किसी भी अनुबंध में एक भी दस्तावेज को यह इंगित करने में सक्षम नहीं है कि किसी भी तहर का ऑर्वड पास किया गया हो और किसी को मुआवजा प्रदान किया गया हो। कोर्ट ने WP (PIL) नंबर 191/2016 में एक डिवीजन बेंच के फैसले पर भरोसा जाताय, इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि राज्य द्वारा भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में भूमि या अन्य अचल संपत्ति खो देने वाला एक भूमि स्वामी सुधार और पुनर्वास अधिनियम, 2013 की धारा 3 (c) (i) के तहत 'प्रभावित परिवार' की परिभाषा में आएगा। कोर्ट ने अंत में निर्देश दिया कि प्रतिवादी के सेवा रिकॉर्ड में एक प्रतिकूल प्रविष्टि दर्ज की जाएगी, जो कि न्यायालय के आदेशों की जानबूझकर की गई अवज्ञा है। इसके साथ ही कोर्ट ने छह सप्ताह की कारावास की सजा को भी निलंबित कर दिया।
-संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एड किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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