जमीं को बे -लिबास मत कर,
तू उसका लिबास रहने दे।
परिंदों से आकाश मत छीन,
तू उनका आकाश रहने दे।
थककर सो गए हैं जो सितारे,
नींद के आगोश में रहने दे।
पीकर भी रहते हैं भौरें प्यासे,
उन्हें कलियों के पास रहने दे।
वो लौटेंगे काम करके ही,
उनका वनवास रहने दे।
सूखने को सूख चुकी वो नदी,
मेरा खाली गिलास रहने दे।
वो खड़ा है सूरज की लाइन में,
उसकी जवां हसरत को रहने दे।
प्यार एक एहसास है, समझ,
रुह को जिस्म में रहने दे।
दूर है वो गुलशन, दूर ही सही,
आएगी बाहर एक दिन,रहने दे।
झूठ के देख पांव होते नहीं,
दुनिया में सच को ही रहने दे।
रामकेश एम.यादव(कवि, साहित्यकार)मुंबई
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