जिंदगी बेजान हो गया | #NayaSaberaNetwork

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जीवन से बचपन का हाथ और साथ क्या छुटा सांसे घुटने लगी 

और जिंदगी से अपनेपन का एहसास संग मिठास खत्म हो गया

ख्वाबों से भी ज्यादा हसीन और खुबसूरत लगती थी जो जिंदगी

उम्र के इस पड़ाव में जब से आए लगता है जिंदगी बेजान हो गया

 

हर पल मौज मस्ती और ख़ुशीयों के एहसास से लिपटा हुआ लगता था

जिंदगी का वो खुबसूरत मोड़, कही दूर पीछे ही छुट कर रह गया

वक़्त ने जरा समझदार और तजुर्बेकार क्या बना दिया हमें

लगता है जैसे सब कुछ तितर बितर हो बिखर कर रह गया 

 

जब तक नासमझ थे एक अलग जायका होता था जिंदगी में

थोड़ी समझ क्या हुई जिंदगी का सारा स्वाद खत्म हो गया

हर कोई अपना सा लगता था हर पल सपनों सा गुजरता था

जिंदगी की हकीकत से मुलाकात क्या हुई सब बदल गया

 
लेखिका – डॉ सरिता चंद्रा
बालको नगर कोरबा (छ.ग.)

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