साहित्य जगत के "पीयूष"जगदीश प्रसाद पांडे | #NayaSaberaNetwork

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नया सबेरा नेटवर्क
लखनऊ: उत्तर प्रदेश‌ के अमेठी के  प्रख्यात साहित्यकार एवं कांग्रेसी नेता जगदीश प्रसाद पांडेय "पीयूष"  का जन्म 5अगस्त 1950 को अमेठी जिले के संग्राम ब्लाक के कसारा गांव में एक कृषक परिवार में हुआ था।5फरवरी,2021को उनका 71वर्ष की उम्र में अमेठी के मुंशीगंज  स्थित संजय गांधी अस्पताल में निधन हो गया।उनके पुत्र अनुप  के अनुसार उन्हें बारह-तेरह दिन पहले लखनऊ स्थित मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था । वहां के डाक्टरों की सलाह पर उन्हें 4फरवरी को यहां लाया गया था।
 "पीयूष " के बिना अमेठी का ताना-बाना अधूरा है। आज साहित्य उदास है और राजनीति दुखी। शहर में छोटी-मोटी चाय की दुकान कर जीवन यापन करने वाले भी शोक में हैं। हो भी क्यों ना, यही सड़क किनारे की दुकानें उनकी सादगी की गवाह हैं। उनका सबसे अधिक समय यहीं बीतता था। पिछले पांच दशक से साहित्य, समाज और सियासत को एक साथ लेकर चलने की "पीयूष "की कला के सब मुरीद हैं।वे अपने जीवन में अजातशत्रु रहे। जिला मुख्यालय गौरीगंज सत्तर के दशक में "पीयूष" की कर्मभूमि बना, उन्होंने यहां के  रणंजय इंटर कालेज में नौकरी के साथ लेखन की शुरूआत की। संजय गांधी अमेठी आएं तो वे उनके खास लोगों में रहे। राजीव गांधी के साथ ही सोनिया, राहुल व प्रियंका तक से "पीयूष "के बहुत मधुर रिश्ते रहे। सियासत में ऊंची पहुंच होने के बाद भी वह अवधी साहित्य की साधना में लगे रहे। दस खंडों में लोक साहित्य की पहली अवधी ग्रंथावली प्रकाशित करके अवधी साहित्य का पूरा पिटारा एक स्थान पर रखने में उन्हें सफलता मिली।भविष्य में यह हर किसी के लिए उपयोगी सिद्ध  होगा। उन्होंने अवधी में चार खंड काव्य और हिंदी में कई विचार ग्रंथ लिखे है। 1989 में गौरीगंज के मिश्रौली गांव में उन्होंने ' विज्ञान गांव की ओर' की  प्रदर्शनी लगवाई। इस प्रदर्शनी में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी आए थे। उसी स्थान पर बाद में  राजीव गांधी साइंस कॉलेज, राजीव गांधी विद्या भवन और "पीयूष" प्रशिक्षण महाविद्यालय की स्थापना उनके कर कमलों से हुई।
 उन्होंने 1984 में नारा लिखा था "अमेठी का डंका, बिटिया प्रियंका"राजीव के आगमन पर नारा दिया "भैया का भौजाई का, वोट कांग्रेस आई का "।राजीव की हत्या के  बाद नारा लिखा था कि" लेबै बदला देबै खून, भैया बिना अमेठी सून"। राहुल के लिए भी नारा लिखा " राहुल एक मशाल है, नया जवाहर लाल है।"
पीयूष की  पहचान उनकी सादगी  रही।वे देखने में बहुत सरल थे। लेकिन, साहित्य व सियासत के हर इंसान से उनकी पहचान रही। अटल जी, बाल ठाकरे तक अपने भाषण में उनका नाम लेते थे। ऐसा लोग बताते हैं। राजीव गांधी की हत्या के बाद "पीयूष" ने अमेठी से पेरम्बदूर तक पद यात्रा निकाली थी। इस शांति यात्रा का  स्वागत तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने खुद पेरम्बदूर में पहुंच कर किया था।
अपने जीवनकाल में उन्होंने  साहित्य के सभी क्षेत्र में प्रतिभा का लोहा मनवाया। उन्होंने सुयोधन व तथागत (खंडकाव्य), गांधी और दलित नवजागरण, मेरा भारत महान, गांधी गांधी गांधी तथा पानी पर हिमालय व अंधे के हाथ बटेर की रचना की। साथ ही  10 खंड में अवधी ग्रंथावली के अलावा किस्से अवध के, अवधी साहित्य सर्वेक्षण और समीक्षा, अवधी साहित्य के सरोकार, लोक साहित्य के पितामह, बोली बानी (14 अंक अनियतकाली पत्रिका), लोकायतन का संपादन भी किया। विदेशों में भी उन्हें   सम्मानित किया गया।सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन के मौके पर अमेरिका के न्यूयार्क में विश्व हिंदी सम्मान, नागरी प्रचारिणी सभा मॉरीशस द्वारा मॉरीशस में अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा लोक भूषण व जायसी सम्मान से भी उन्हें  नवाजा गया। इसके अलावा 1993 में सोवियत रूस में आयोजित विश्व युवा महोत्सव में सहभागिता करने के अलावा उन्होंने हिंदी व अवधी के प्रचार प्रसार के लिए कई देशों की यात्रा भी की। वे  राष्ट्रीय एकता व खुशहाली के पक्षधर थे प्रख्यात साहित्यकार रवींद्र कालिया ने  एक अगस्त 1991 को पीयूष की पुस्तक गांधी-गांधी -गांधी में अपना संदेश कुछ यू लिखा है जिस प्रकार इंदिरा-राजीव -सोनिया का स्पर्श मिलते ही अमेठी की ऊसर बंजर धरती लहलहा उठी, वैसे निम्न मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए जगदीश पीयूष  राजीव-सोनिया के सम्पर्क में आते ही आंचलिक पत्रकारिता से देश भर में विख्यात हो गए। बल्कि यह कहना भी गलत न होगा, अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया के लिए भी बिना उनके सहयोग के  अमेठी के विकास की कहानी कहना मुश्किल हो गया था। वे राष्ट्रीय एकता व खुशहाली के पक्षधर थे। उनका हर दल में सम्मान था।वैसे तो वे कांग्रेस से जीवन भर जुड़े रहे पर दूसरे दलों में भी उनका बहुत  सम्मान था। सामाजिक सरोकार से जुड़े कार्यों में वह भाजपा व दूसरे दलों के लोगों के साथ भी कंधे से कंधा मिलाकर काम करते दिखते थे। शायद तभी उनकी अंतिम यात्रा में हर कोई पहुंचा था।भारत के प्रत्येक महानगर में उनको जानने पहचानने वाले लोग हैं।मुंबई की ही बात करें तो बृहन्मुंबई मनपा स्कूलों के पूर्व अधीक्षक रामचंद्र पाण्डेय हों या प्रिंसिपल,  साहित्यकार डाक्टर रमाकांत तिवारी' क्षितिज " हों सभी    के वे  करीबी थे। "क्षितिज " की बात करें तो उन्होंने ऐसे समय में अपनी बहन का  विवाह किया इनके पुत्र से किया   था जिस समय उनकी प्रसिद्धि चरम पर थी।लोगों ने  " क्षितिज" को  मना भी किया था कि आप अपनी बहन का रिश्ता लेकर उनके यहां मत जाइए ,क्योंकि पीयूष का जिले भर के  संभ्रांत परिवारों में से एक थे।उनका  बहुत बड़ा नाम था।लेकिन "क्षितिज"भी तो कुछ कम नहीं थे ।उस समय मुंबई  में इनके परिवार की तूती बोलती थी।इनके पिता श्री भगवान तिवारी कांग्रेस के दिग्गज नेता माने जाते थे।स्व.सुनील दत्त , स्व.गुरूदास कामत सभी उनके मित्र थे।लेकिन "क्षितिज"  उनके रिश्तेदार तो थे ही साथ ही मुझे ऐसा लगता है "क्षितिज "को पीयूष की मृत्यु का  मुंबई में सबसे अधिक दुख हुआ होगा।क्योंकि ये "क्षितिज " ही हैं जब पीयूष   मुंबई आते तो मुंबई से वापस जाने तक उनके साथ रहते ।मशहूर गीतकार मनोज मुंतशिर ने सोशल मीडिया पर साहित्यकार पीयूष के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा -मेरे पिता तुल्य ,अवधी के वरद-पुत्र और अमेठी के पहले सेलिब्रेटी नहीं रहे।मेरे बचपन के  कई पन्ने एक साथ मिट गए ।वो मार्गदर्शक चला गया  जिसने पहली बार कवि सम्मेलन में मुझे 300रूपए की फीस दिलवायी थी।वो साथी चला गया जो पिछले 30सालों में मेरी हर छोटी-बड़ी कामयाबी पर निहाल होता रहा।मैंने  क्या खो दिया,ये सिर्फ मेरा दिल जानता है। मनोज मुंतशिर की तरह आज न जाने कितने लोग "पीयूष"को याद कर रहे होंगे।मेरी भी आंखों में आंसुओं का सैलाब है।हृदय से एक ही आवाज निकल रही हैं हमें छोड़कर जाने वाले ,तुम फिर वापस आओ।लेकिन अदम गोंडवी ने लिखा है-दिल के सूरज को ,सलीबों पे चढ़ाने वालो,रात ढल जाएगी,इक रोज जमाने वालो।
-चंद्रवीर बंशीधर यादव (शिक्षाविद्),महाराष्ट्र

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