भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत भ्रष्टाचार, समाज के खिलाफ अपराध है- सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अभियुक्त को बरी करने का हाईकोर्ट का फैसला | #NayaSaberaNetwork

भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत भ्रष्टाचार, समाज के खिलाफ अपराध है- सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अभियुक्त को बरी करने का हाईकोर्ट का फैसला | #NayaSaberaNetwork


नया सबेरा नेटवर्क
भ्रष्टाचार एक घातक महामारी-भ्रष्टाचार विरोधी वारियर्स बनकर हर नागरिक को सामने आना जरूरी- एड किशन भावनानी
गोंदिया- भारत में भ्रष्टाचार शब्द नया नहीं है। यह हम दशकों से प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से सुनते आ रहे हैं। मेरी निजी राय है कि, करीब-करीब हर आदमी किसी ना किसी मोड़ पर इससे पीड़ित हुआ होगा, जिस प्रकार हम सब ने मिलकर कोरोना महामारी के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ी और जंग जीते, उसी तरह हम सबको मिलकर इस भ्रष्टाचार रूपी महामारी से भी भ्रष्टाचार विरोधी वारियर्स बनकर ,सामने आना होगा। और हर स्तर पर इसका विरोध कर यह संकल्प लेना होगा कि, इस महामारी को भी जड़ से उखाड़ फेंकेंगें। हालांकि अभी हाल के वर्षों से हम मीडिया के माध्यम से देखते और सुनते हैं कि भ्रष्टाचार के पकड़ने के मामले बढ़ गए हैं।अब छोटे बाबू से लेकर बड़े अधिकारियों तक भ्रष्टाचारीयों को पकड़ने के मामले मीडिया में खूब पढ़ने और सुनने को मिलते हैं। डिजिटलाइजेशन के कारण भी भ्रष्टाचार की कुछ हद तक कमर टूटी है। फिर भी नए-नए तरीकों व कोडवर्ड से भ्रष्टाचार तो होता ही है। अब जरूरत है हम सब नागरिकों को मिलकर एक होने की, और संकल्प लेने की,कि भ्रष्टाचार नहीं होने देंगे। और इसके खिलाफ एक ग्रामस्तर से लेकर मेट्रोसिटी स्तर तक, जन जागरण अभियान चलाने की जरूरत है। वैसे देखा जाए तो शासकीय स्तर पर इस संबंध में अभियान चलाने की बहुत जरूरत है। जिलास्तर पर भ्रष्टाचार विरोधी वारियर्स की नियुक्ति की जाए जो शासकीय यंत्रणा के साथ मिलकर हर छोटे-बड़े ऑफिस जो ग्रामस्तर से जिलास्तर पर, हर ऑफिसर पर नजर रखें ,और जनता ने पूरा सहयोग देने पर ही यह भ्रष्टाचार मुक्त भारत का संकल्प पूरा होगा।.....भ्रष्टाचार से संबंधित एक मामला मंगलवार दिनांक 2 फरवरी 2021 को माननीय सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की एक बेंच जिसमें माननीय न्यायमूर्ति अशोक भूषण, माननीय न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी तथा माननीय न्यायमूर्ति एम आर शाह के सम्मुख क्रिमिनल अपील क्रमांक99/2021जो एसएलपी(क्रिमिनल)9105/ 2015 से उदय हुई थी। याचिकाकर्ता गुजरात राज्य बनाम प्रतिवादी अधिकारी, के रूप में आया। जिसमें माननीय बेंच ने अपने 9 पृष्ठों और 8 पॉइंटों के आदेश में, गुजरात हाईकोर्ट द्वारा क्रिमिनल अपील क्रमांक 92/2003 पर 12 जनवरी 2015 को पारित आदेश जिसमें निचली अदालत के फैसले को दरकिनार करते हुए आरोपी को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपराध से बरी किया था। निचली अदालत ने आरोपी को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अपराध का दोषी ठहराया था, जो आईटीआई गांधी नगर में सहायक निदेशक के तौर पर काम करता है। अदालत ने उस पर 10,000 रुपये का जुर्माने के साथ उसे पांच साल के कारावास की सजा सुनाई थी। माननीय बेंच ने,अभियुक्त को बरी करने के आदेश को खारिज कर गुजरात राज्य की अपील को स्वीकृत किया। बेंच ने स्पष्ट किया कि वादी, प्रतिवादी के केस के मरिट्स के आधार पर नहीं ऑब्जर्व किया गया है माननीय हाईकोर्ट में मेरिट्स व लॉ के अनुसार दोनों देखना होगा बेंच ने आगे कहा कि,भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अपराध समाज के खिलाफ अपराध हैं, बेंच ने भ्रष्टाचार के आरोपी को बरी करने के गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए कहा।इस मामले में, आरोपी,को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) और 13 (2) के साथ पढ़ते हुए धारा 7 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।अपील की अनुमति देते हुए,उच्च न्यायालय ने उसे बरी कर दिया और इससे दुखी होकर राज्य ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।फैसले का अवलोकन करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा अभियुक्तों को बरी करते समय रिकॉर्ड पर पूरे सबूतों की विस्तार से पुन: सराहना नहीं की गई है।बेंच 
ने कहा,हमने यह पता लगाने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा पारित दोषमुक्त निर्णय और आदेश पर विचार किया ​है कि क्या उच्च न्यायालय ने सजा के फैसले और आदेश के खिलाफ आपराधिक अपील में क़वायद तय सिद्धांतों के अनुरूप है। हम पाते हैं कि सजा के आदेश के खिलाफ अपील से निपटते समय हाईकोर्ट उस तरह से सख्ती ये आगे नहीं बढ़ा, जैसा उसे करना चाहिए था। उच्च न्यायालय द्वारा पारित किए गए, बरी किए गए फैसले, और आदेश के आरोपों के देखने पर, हम पाते हैं कि, इस तरह, प्रतिवादी - आरोपी को बरी करते समय रिकॉर्ड पर पूरे सबूतों की विस्तार से पुन: सराहना नहीं गई है। उच्च न्यायालय ने केवल गवाहों के दिए बयानों पर सामान्य अवलोकन किया है। हालांकि, रिकॉर्ड पर पूरे सबूतों के बारे में विस्तार से नहीं बताया गया है, जो कि उच्च न्यायालय द्वारा ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए सजा के निर्णय और आदेश से निपटते हुए किया जाना चाहिए था।बरी किए जाने के खिलाफ अपील के संबंध में, पीठ ने इस प्रकार कहा -किसी भी अपीलीय अदालत को ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित बरी आदेश के खिलाफ एक अपील से निपटने के दौरान, यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि बरी होने के मामले में अभियुक्त के पक्ष में दोहरा अनुमान है। सबसे पहले, निर्दोषता का अनुमान उसे आपराधिक न्यायशास्त्र के मूल सिद्धांत के तहत उपलब्ध है कि प्रत्येक व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाएगा जब तक कि वह सक्षम न्यायालय द्वारा दोषी साबित न हो जाए।दूसरे,अभियुक्त ने अपने बरी होने को सुरक्षित कर लिया, उसकी निर्दोषता का अनुमान ट्रायल कोर्ट द्वारा और प्रबल, पुष्ट और मजबूत हो गया। इसलिए, ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के मामलों से निपटते समय,अपीलीय न्यायालय की कुछ सीमाएं होंगी।अदालत ने कहा कि सजा के आदेश के खिलाफ अपील में, इस तरह के प्रतिबंध नहीं हैं और अपील की अदालत के पास सबूतों की सराहना करने की व्यापक शक्तियां हैं और उच्च न्यायालय को पहली अपीलीय न्यायालय होने के कारण रिकॉर्ड पर पूरे साक्ष्य को फिर से प्राप्त करना है ।उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए,यह देखा गया,उच्च न्यायालय को सराहना करनी चाहिए कि वह भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अपराधों से निपट रहा है जो अपराध समाज के खिलाफ हैं। और इसलिए उच्च न्यायालय को अधिक सावधान रहना चाहिए और विस्तार से जाना चाहिए। उच्च न्यायालय ने अपील करने के जिस तरीके को अनुमति दी, बेंच कहा कि आरोपी को बरी करते समय रिकॉर्ड में दर्ज सबूतों पर विस्तारपूर्वक गौर नहीं किया गया। मामला उच्च न्यायालय में इसके लिए वापस भेजे जाने के योग्य है,ताकि वह इस पर कानून के अनुसार नए सिरे से विचार करे।
उसे हम मंज़ूर नहीं करते हैं।पीठ ने इस मामले को उच्च न्यायालय में भेज दिया
-संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एड किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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