सनातन धर्म की प्रमुख शक्तिपीठों में शुमार है शीतला चौकियां धाम

 

  • मां विन्ध्यवासनी के दर्शन के पूर्व यहां टेकना पड़ता हैं मत्था
  • नवरात्रि में लाखों की तादाद में दर्शन के लिए पहुंचते है दर्शनार्थी
सुहैल असगर खान
जौनपुर।
बात जब धर्म के इतिहास की चलती है तो पूर्वांचल ही नहीं पूरे देश में जनपद की शक्तिपीठ मां शीतला चौकियां धाम का जिक्र जरुर होता है। इस धाम का सनातन धर्म के इतिहास में कितना महत्व है इसका अंदाजा मारकण्डेय पुराण में उल्लिखित इस पंक्ति से बखूबी लगाया जा सकता है- 
शीतले तू जगन्माता, शीतले तू जगत पिता,
शीतले त्वं जगतधात्री, शीतलाय नमो नम:।

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यही वजह है कि आज भी इस देवस्थली का शुमार देश की प्रमुख शक्तिपीठों में किया जाता है। भक्त आज भी मां विन्ध्यवासिनी के दर्शन के साथ मां शीतला के दर्शन भी जरुर करते है। जहां तक इस शक्तिपीठ के स्थापत्य काल का प्रश्न है तो सनातन धर्म की इस देवस्थली के बारे में कई किवदंतियां तो हैं ही इतिहास के पन्नों पर भी जो कथाएं उल्लिखित है उसके आधार पर यह शक्तिपीठ चार सौ से पाँच वर्ष पुरानी मानी जाती है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस देवस्थली का इतिहास जनपद के अस्तित्व काल से ही जुड़ा है।

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इतिहास के पन्नों पर दर्ज गाथाओं के अनुसार चौकियां देवी की स्थापना भरों के शासनकाल में हुई थी क्योंकि जनपद के अस्तित्व में आने के साथ भरों के शासन की भी शुरुआत होती है। ऐसा उल्लिखित है कि देश में अति प्राचीन काल से ही शिव और शक्ति की उपासना की जाती थी। सैन्यधन सभ्यता काल का वृषभ और मातृदेवी की मूर्ति की प्राप्ति से यह प्रमाणित भी हो चुका है। 
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इतिहास के आधार पर जनपद हिन्दू राजाओं के काल में आबाद हुआ। सभी जातियों के मिले जुले साधू संत आदि गंगा मां गोमती के तट पर अनेक मंदिरों का निर्माण कर वहीं उपासना किया करते थे। जिसमें कुछ के ध्वन्सांवशेष और कुछ के जीर्णोद्धार परिष्कृत रुप से आज भी देखने को मिलते है। शीतला माता मंदिर भी इसी समय का माना जाता है। हालांकि कुछ लोग इसे यादव शासकों द्वारा निर्मित किया गया मानते हैं लेकिन प्रमाणों के आधार पर यह लगभग पुष्ट हो चुका है कि शीतला माता मंदिर भरों के शासनकाल में ही अस्तित्व में आया है। 
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ऐसा माना जाता है कि जनपद के अस्तित्व में आने के साथ भर शासकों का भी उदय हुआ और भर शासक शक्तिशाली भी थे। वर्तमान किले के स्थान पर ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन भरों का किला था और भर शासकों द्वारा ही वर्तमान चौकियां धाम पर चौकी का निर्माण कराया और वहीं पर मूर्ति की स्थापना की और यही वजह है कि चौकी अर्थात चबूतरे के नाम से ही इस स्थान का नाम भी चौकियां धाम पड़ा। देवी शीतलता प्रदान करतीं हैं इसे शीतला चौकिया धाम कहा गया।
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दूसरी तरफ ऐसा भी कहा जाता है कि 1722 ई. में उस स्थान पर मां शीतला की मूर्ति स्थापित की गयी जिसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि गांव के एक माली देवचंद के परिवार में शीतला देवी नामक एक स्त्री थी जो देवी की बड़ी पुजारन थी। कम उम्र में ही पति के दिवंगत होने के साथ ही वह भी उसी स्थान पर सती हो गयी। जिस स्थान पर वह सती हुई वहां कुछ लोगों द्वारा प्राचीन र्इंट का चबूतरा स्थापित किया गया और बाद में इसका नाम शीतला चौकियां हो गया। हालांकि इस किवदंती से अधिकांश लोग सहमत नहीं है।
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कुछ लोगों का यह मानना है कि इब्रााहिम शाह शर्की नगर से सटे प्रेमराजपुर में गोमती किनारे बने विजय मंदिर जो की शीतला देवी का मंदिर था गिराने लगे तो कुछ हिन्दुओं ने वहां स्थापित मूर्ति को उठा लिया और उसी स्थान पर चबूतरा बनाकर स्थापित कर दिया गया जहां आज शीतला चौकियां धाम है जो भी हो आज भी शीतला चौकियां धाम देश की प्रसिद्ध शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है। 
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जनपद के जंक्शन रेलवे स्टेशन से पूर्व उत्तर दिशा में लगभग तीन किलोमीटर और जिला मुख्यालय से करीब पाँच किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व स्थित इस अतिप्राचीन धर्मस्थान पर आज भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु शीश नवाने के लिए और अपनी मनोकामना पूर्ण कराने के लिए मां के चरण तक पहुंचते है। नवरात्र आरम्भ में यह स्थान पूरी तरह भक्तों की भीड़ से भर जाता है। मां की एक झलक पाने के लिए लोग कई कई घंटे कतारों में खड़े दिखाई पड़ते है। 
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जिले का यह प्राचीन धर्मस्थल आज भी जनपदवासियों के साथ गैर जनपद के लोगों के लिए भी आस्था का एक प्रमुख केंद्र है और यह भी देखा जाता है कि दूर दराज के जनपदों के लोग भी जिन्हें इस धाम के बारे में जानकारी वे मां विन्ध्यवासिनी के दर्शन के पूर्व यहां मत्था टेकने जरुर आते है। 
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ऐसा माना जाता है कि मां शीतला चौकियां के दर्शन किए बिना मां विन्ध्यवासिनी का दर्शन करने वालों के साथ कभी भी कोई अनहोनी घटनाएं घटित हो सकती है। इतना ही नहीं ऐसा भी विश्वास है कि मां शीतला चौकियां धाम के दर्शन के बाद मां विन्ध्यवासिनी का दर्शन करने से दर्शन पूर्ण एवं सुफल होता है।

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