लखनऊ/जौनपुर। विधानसभा में मंगलवार को शीतकालीन सत्र में सपा विधायक डॉ. रागिनी सोनकर ने बेसिक शिक्षा विभाग की नीतियों और कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किये। उन्होंने कहा कि बीते दिनों प्रदेश सरकार द्वारा "मर्जर" के नाम पर बड़ी संख्या में प्राथमिक विद्यालयों को बंद किया गया, यह कहकर कि वहां बच्चों की संख्या कम है। विधायक डॉ रागिनी ने सरकार से यह स्पष्ट रूप से पूछा कि पिछले नौ वर्षों में प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार ने कौन-सी ठोस योजना बनाई और यदि कोई योजना थी तो उसका परिणाम क्या रहा? बेसिक शिक्षा मंत्री द्वारा दिए गए उत्तर को उन्होंने "निराशाजनक" बताया, क्योंकि मंत्री स्वयं स्वीकार करते हैं कि बच्चों की संख्या नहीं बढ़ी जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार ने सरकारी स्कूलों को सशक्त बनाने के लिए कोई प्रभावी पहल नहीं किया। उन्होंने कहा कि किसी भी विद्यालय में बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए सबसे आवश्यक है पर्याप्त शिक्षक, बच्चों का शारीरिक-मानसिक विकास और सम्मानजनक शैक्षणिक वातावरण। लेकिन वास्तविकता यह है कि आज प्रदेश में 9,508 विद्यालय केवल एक शिक्षक के सहारे चल रहे हैं जबकि कई विद्यालयों में सिर्फ शिक्षामित्र कार्यरत हैं। सरकार पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि दो लाख से अधिक शिक्षकों की कमी के बावजूद भर्ती प्रक्रिया में लगातार देरी की जा रही है।
विधायक सरकार से पूछा— शिक्षक भर्ती जल्द कब लायी जायेगी?
योग्य शिक्षामित्रों के समायोजन और मानदेय वृद्धि पर सरकार कब विचार करेगी?
उन्होंने शिक्षकों के साथ हो रहे व्यवहार पर भी कड़ा विरोध दर्ज कराया। शिक्षकों से गैर-शैक्षणिक कार्य कराए जाने, सर्वे, गणना, व्यक्तिगत आयोजनों में ड्यूटी और यहां तक कि अपमानजनक कार्यों में लगाए जाने को उन्होंने "गुरु के सम्मान का हनन" बताया। साथ ही उन्होंने वर्षों से लंबित अंतर-जनपदीय स्थानांतरण, बिना टेट नियुक्त लगभग 1.86 लाख शिक्षकों पर टेट लागू किए जाने की समस्या और शिक्षकों पर हो रहे मानसिक उत्पीड़न पर सरकार से स्पष्ट नीति और राहत की मांग किया। उन्होंने यह भी बताया कि 35 शिक्षक और शिक्षा मित्र गैर-शैक्षणिक कार्यों के दबाव में अपनी जान गंवा चुके हैं और सरकार से मांग किया कि उनके परिवारों को सरकारी नौकरी और उचित मुआवजा दिया जाय। अंत में सदस्य ने सरकार से अपने तीनों प्रमुख सवालों पर स्पष्ट और ठोस उत्तर देने की मांग करते हुये कहा कि जब तक शिक्षक सुरक्षित, सम्मानित और पर्याप्त संख्या में नहीं होंगे, तब तक सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाना संभव नहीं है।
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