Mumbai News : कुल परंपरा के पालन त्याग और अर्पण जरूरी: प्रेमभूषण महाराज

नालासोपारा। प्रसिद्ध कथाकार प्रेमभूषण महाराज ने कहा कि कुल परंपरा का पालन करने के लिए त्याग और अर्पण करना होगा। जिस कार्य को देखकर जगत के साथ हमारे पितर भी प्रसन्न होते हो, जो धर्मपथ पर चलकर जो प्राप्त हो उसे सुकृत्य कहते हैं। यह उद्गार महाराज ने नालासोपारा में चल रही राम कथा के दौरान व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि धर्मपथ से अर्जित अर्थ ही सुख प्रदान करता है। धर्म से जीवन में वैराग्य की प्राप्ति होतो है। छोटे छोटे व्यवहार में भक्ति माता को कभी नही बांधना चाहिए। 

पूज्यश्री ने मानस के सबरी प्रसंग के आश्रय में कहा कि भक्ति सबसे सरल है किंतु प्रवचन कर्ता संतों और कथाकारों ने इसे कठिन बना दिया है, कर्मकांड कठिन होता इसलिए कर्मकांडी लोग कर्मकांड न करने वालों की बुराई करते हैं इसलिए भक्त को इनसे बचते हुए भक्ति पथ पर निरंतर लगे रहना चाहिए। इस प्रसंग पर पूज्यश्री कबीर जी के प्रेरक भजन मोहे भावे न भक्ति भिलनिया की सुनाकर भाव विभोर कर दिया। पूज्यश्री ने कहा कि लोगों को बात बहुत जल्दी बुरी लगती है इसलिए उन्हें प्रसन्न रखने के लिए मीठा-मीठा बोलना चाहिए। जीवन मे कुछ भी प्राप्त करने के लिए विधार्थियों को शास्त्र में बताए गए पांच लक्षणों को स्मरण रखते हुए जीवन जीना चाहिए। देश में आरक्षण पर छाती पीटने बालों को पूज्यश्री ने संदेश देते हुए कहा कि, आरक्षण केवल नौकर बना सकती है, विद्धवान और प्रतिभावान नही बना सकती इसलिए आरक्षण का रोना बंद करके विद्यार्थियों को तप द्वारा ज्ञानार्जन करना चाहिए।

रामजी के वनवास को भगवान की इच्छा बतलाते हुए पूज्यश्री ने कहा कि सबसे राय नही लेना चाहिए। प्रेम का परीक्षण कभी नही करना चाहिए। अकारण जो आपके आचार, विचार,  व्यवहार पर  प्रकाशित करता है वही आप को सच्चा प्रेम करता है।जिससे प्रेम हो उसके प्रति कोई भी बुराई कदापि न सुनी जाए। माताओं का प्रेम पहाड़ जैसा विशाल है, चाहे वह निज माता हो या गौ माता हो। स्पर्श दोष से सदैव बचना चाहिए।जीवन में रामराज्य की स्थापना के लिए एक भाई को राज सत्ता की व्यवस्था में तो दूसरे को वन की व्यवस्था में तपना होगा। हम तो हमारी मस्ती में बस झूमते चले हैं..पूज्यश्री ने श्रोताओं को इस मोहक भजन को सुना कर वर्तमान में जीने का शिक्षण प्रदान किया प्रेमभूषण महाराज की कथा गंगा तट पर केवट के निकट पहुंचती है जहाँ पूज्य महाराज जी ने भाव मे यह भजन सुनाया.. खड़े हैं दोनों भइया सुर सर तीर..जिससे उपस्थित जन सैलाब ध्यानस्थ हो गया।

जब तक भगवान स्वयं न जना दे तब तक भगवान के मर्म को कोई नही जान सकता।जीवन में कभी किसी कारण से दोष न लगाया जाए क्योंकि भगवान कुछ नही करते है वे सी.एम. डी ऑफ यूनिवर्स हैँ जो कुछ करते हैं ब्रह्मा जी और शिवबाबा करते हैं।पूज्यश्री ने केवट की हठ भक्ति का मार्मिक चित्रण करते हुए कहा कि भक्ति में भोजन और  विवेक की कोई बाध्यता नही है। भगवान के प्रसाद में श्रद्धा हो, देने का स्वभाव हो तो यह भी भक्ति है।घर मे प्रेम न करने वाला मंदिर  जाकर प्रेम कभी नही कर सकता। हँसी जीवन के लिए महौसधि है, न हँसने वाला व्यक्ति बहुत खतनाक होता है। 

बिजेंद्र रामचंद्र सिंह के संयोजन और मुख्य यजमान मीरा बिजेंद्र सिंह के संकल्प से मानस महाकुंभ में पहुंचकर सुप्रसिद्ध गायिका स्वाती मिश्रा मुम्बई प्रधान गणेश अग्रवाल, ओमप्रकाश सिंह, राजेश एस. सिंह, त्रिभुवन पाण्डे, कुंवर संजय सिंह, नारायण सिंह, अजय सिंह, श्रद्धा प्रिंस सिंह, कुमारी शिवानी सिंह, प्रभात सिंह बब्लू, सतीश सिंह, राजेश पाण्डे, सुधाकर सिंह'विसेन, आर.डी. सिंह, 'अवनीश सिंह, वरिष्ठ पत्रकार लालशेखर सिंह, लक्ष्मीकांत शुक्ला, सनी सिंह, महादेव सिंह, विशाल सिंह ननवग, त्रिभुवन पांडे, विजयभान सिंह रेखा गुप्ता, सरिता चौबे एवं दिनेश प्रताप सिंह आदि लोगों ने अवगाहन करते हुए अपना सौभाग्यवर्धन किया।

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