मेरे प्यार की पहली शाम,
उसकी आँखों का वो जाम,
मैं उसको ढूँढ रहा हूँ!
कि उसको ढूँढ रहा हूँ।
मेरे हाथों में वो हाथ,
दहकती सावन की बरसात,
उसकी फूलों जैसी बात,
मैं उसको ढूँढ रहा हूँ!
कि उसको ढूँढ रहा हूँ।
वो धूल भरी थीं राहें,
मेरी बाँह में उसकी बाँहें,
वो चंचल शोख निगाहें,
मैं उसको ढूँढ रहा हूँ!
कि उसको ढूँढ रहा हूँ।
वो बहता नदिया का पानी,
उसकी उठती हुई जवानी,
मेरे प्यार की थी दीवानी,
मैं उसको ढूँढ रहा हूँ!
कि उसको ढूँढ रहा हूँ।
उसके क़दमों का निशान,
मेरी साँसों की कमान,
देखो प्यार की खुली दुकान,
मैं उसको ढूँढ रहा हूँ!
कि उसको ढूँढ रहा हूँ।
खिज़ा से बाग हुए वीरान,
सजा है काँटों से गुलदान,
अब न फूलों में वो आन,
मैं उसको ढूँढ रहा हूँ!
कि उसको ढूँढ रहा हूँ।
वो कोयल के जैसी बोली,
वो छुपी कहाँ मेरी होली,
मेरे द्वार की थी रंगोली,
मैं उसको ढूँढ रहा हूँ!
कि उसको ढूँढ रहा हूँ।
अब वो ख्वाब रहे न सुहाने,
अब ना ताजे बचे फसाने,
अब न आता नींद उड़ाने,
मैं उसको ढूँढ रहा हूँ!
कि उसको ढूँढ रहा हूँ।
वो पीले सरसों के फूल,
मुझे धंसो न बनकर शूल,
मुझसे हो जाए न भूल,
मैं उसको ढूँढ रहा हूँ!
कि उसको ढूँढ रहा हूँ।
कि मेरा दिल तो है बस एक,
मेरा ईश्वर तू भी देख,
कहीं न हो जाए अतिरेक,
मैं उसको ढूँढ रहा हूँ!
कि उसको ढूँढ रहा हूँ।
माना मैं हूँ प्यार का चोर,
सारी दुनिया में एक शोर,
कहाँ छुप गई प्यार की भोर,
मैं उसको ढूँढ रहा हूँ!
कि उसको ढूँढ रहा हूँ।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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