नजर से नजर तो मिलाया करो,
नाराज होने पर मनाया करो।
ये ज़िन्दगी है बस चार दिन की,
रोज नजरों से जाम पिलाया करो।
जिस पानी में देखो न गहराई हो,
भूलकर न उसमें नहाया करो।
मत निकलो आशिकाना लिबास में,
बाहर सादगी से कदम बढ़ाया करो।
कोरे दिल के ग्राहक होते हैं कई,
उन आशिकों से दामन बचाया करो।
इन आँखों में है आशियाना मेरा,
मेरे तसव्वुर में रोज आया करो।
लोग दिल चीरना भी जानते हैं,
कभी-कभी झूठी कसमें खाया करो।
तेरे सिवाय कोई मुझे भाता नहीं,
सलीके से दुपट्टा गिराया करो।
हवाएँ भी चुराती हैं बदन से खुशबू,
मयकशी बदन न दिखाया करो।
ये अधूरी मोहब्बत यूँ चलती रहे,
बस जख्मों पे मरहम लगाया करो।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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