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तालिबान को लेकर पड़ोसी और विस्तारवादी देश द्वारा लचीला रुख़ अपनाने से अमेरिका, रूस द्वारा नई रणनीति भारत केंद्रित समीकरण की संभावना - एड किशन भावनानी
गोंदिया - वैश्विक रूप से जग प्रसिद्ध है कि भारत एक शांति का प्रतीक देश है और भारत की यह छवि वर्तमान परिस्थितियों में अति महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी, क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का पूर्ण कब्जा हो चुका है।वहां तालिबान ने अपनी सरकार का गठन कर,कार्य शुरू कर दिया है। हालांकि वैश्विक रूप से अनेक देश असमंजस में है कि अब तालिबान अधिकृत अफ़ग़ान को मान्यता दें या नहीं। वहीं बीते दिनों भारतीय अध्यक्षता में दिनांक 31 अगस्त 2021 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी प्रस्ताव क्रमांक 2593 पारित किया, क्यों कि तालिबान द्वारा संयुक्त राष्ट्र को दिनांक 27 अगस्त 2021 को जारी एक बयान में अपनी सकारात्मक प्रतिबंधों के पालन का भरोसा दिया था। जिसके आधार पर उपरोक्त मान्यता का प्रस्ताव पारित किया गया।...साथियों बात अगर हम आज की करें तो भारत ने लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद को लेकर अपनी बात को प्राथमिकता में बनाए रखा है, क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार को पड़ोसी और विस्तारवादी देश द्वारा अपना लचीला रुख अपनाने से भारत की संप्रभुता और सुरक्षा को लेकर चुनौतियां पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है, क्योंकि तालिबान का कश्मीर मुद्दे पर बयान बदलना, पड़ोसी देश द्वारा कश्मीर मुद्दे को उछालना, विस्तारवादी देश द्वारा अफ़ग़ानिस्तान में निवेश, आधारभूत संरचना, रक्षा इत्यादि क्षेत्रों में बढ़ते सहयोग और हस्तक्षेप के चलते भारत को सुरक्षात्मक रणनीतिक रोडमैप बनाना ज़रूरी हो गया है। इसलिए केंद्रीय विदेश मंत्री,केंद्रीय सुरक्षा सलाहकार सहित राजनैतिक, रणनीतिक, कूटनीतिक, सुरक्षात्मक, रणनीतियों पर काम करना पूरे जज़्बे और जांबाज़ी से शुरू है।...साथियों बात अगर हम अमेरिका की करें तो, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन का एक बयान खासा महत्वपूर्ण हो गया है। सेना की वापसी के बावजूद अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय आतंकी गुटों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की तैयारी मजबूत बनाए रखना चाहता है। अमेरिकी प्रशासन इस संबंध में दूसरे देशों में अपना बेस बनाने की बात कर रहा है, ताकि ज़रूरत पड़ने पर अफ़ग़ानिस्तान में आतंकियों और उनके ठिकानों पर हमले किए जा सके, तो क्या बेस्ट के विकल्प में भारत का भी स्थान होगा ? कह नहीं सकते। पर्दे के पीछे भी सामरिक समीकरण बदल रहे हैं। गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के अफ़ग़ानिस्तान से सेना वापसी के फैसले ने दुनिया पर आतंकी साया कहीं गहरा दिया है। अब अमेरिकी प्रशासन भी इस खतरे को समझ रहा है। संभवतः इसीलिए उसने पड़ोसी मुल्क की भूमिका पर चर्चा की है, औऱ निकट भविष्य में भारत के साथ रणनीतिक सहयोग औऱ मजबूत करने का आश्वासन दिया है। विशेषज्ञों की मानें तो अमेरिका और रूस के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों का पिछले दिनों भारत दौरा इस बात का साफ संकेत है कि बदले समीकरणों में इलाके की रणनीति को लेकर काफी कुछ पर्दे के पीछे चल रहा है। अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति पर भारत मे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों के जरिए लगातार इनपुट खंगाल रहे हैं। भारत, देखो और इंतजार करो की कूटनीति पर काम करते हुए वैश्विक स्तर पर अपने तमाम हितों को खंगाल रहा है। राष्ट्रपति बाइडेन ने मार्च में क्वाड नेताओं के पहले शिखर सम्मेलन की डिजिटल तरीके से मेजबानी की थी जिसमें स्वतंत्र, उन्मुक्त, समावेशी, लोकतांत्रिक मूल्यों से जुड़े हिंद-प्रशांत क्षेत्र का संकल्प व्यक्त किया गया था जो जबरन कब्जे जैसी बाधाओं से मुक्त हो, इसे एक तरह से विस्तारवादी देश के लिए संदेश के तौर पर देखा गया था।...साथियों बात अगर हम हमारे पीएम के 22 सितंबर 2021 के अमेरिका दौरे की करें तो, अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की नई सरकार के गठन के बाद पीएम का ये दौरा काफ़ी अहम माना जा रहा है। पीएम और जो बाइडेन के बीच अफ़ग़ानिस्तान और विस्तारवादी देश को लेकर बातचीत हो सकती है। पीएम के अमेरिका दौरे पर दुनिया की नज़रें टिकी रहेंगी। अमेरिका में क्वाड देशों की बैठक भी होनी है जिसमें भारत अमेरिका के अलावा, ऑस्ट्रेलिया और जापान के प्रधानमंत्री भी शामिल होंगे।पीएम के अमेरिका दौरे पर तालिबान, विस्तारवादी देश और कोरोना पर चर्चा होने की उम्मीद है। हमारे पीएम 25 सितंबर को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित करेंगे। ऐसा कहा जा रहा है कि पीएम इस दौरे के दौरान अफ़ग़ानिस्तान और विस्तारवादी देश को लेकर जो बाइडेन से बात कर सकते हैं। आधिकारिक तौर पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा रहा है कि ये दो मुद्दे पीएम के एजेंडे में ऊपर रहने वाले हैं।वैसे भी दोनों अफ़ग़ानिस्तान और विस्तारवादी देश का अमेरिका से भी सीधा कनेक्शन है, ऐसे में इन देशों की परिस्थिति पर चर्चा होना लाजिमी रहेगा। वास्तविक स्थिति तो हमें 25 सितंबर 2021 को ही पता चल सकती है के किस प्रकार का वार्तालाप हुआ। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे के भविष्य में अफ़ग़ानिस्तान को लेकर वैश्विक प्रतिक्रिया के केंद्र में भारत ही रहेगा, भारत केंद्रित समीकरण में महत्वपूर्ण स्थान में सैन्य साझेदारी की संभावना हो सकती है क्योंकि तालिबान को लेकर पड़ोसी और विस्तार वादी देश द्वारा लचीला रूख़ अपनाने से अमेरिका, रूस द्वारा नई रणनीति की संभावना है जिसमें भारत महत्वपूर्ण केंद्रीय समीकरण की संभावना के रूप में देखा जाएगा।
संकलनकर्ता- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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