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ग्रामीण आबादी का बड़ा वर्ग गुणवत्तापूर्ण नेत्र देखभाल से वंचित - नेत्रदान के बारे में मिथकों, झूठी मान्यताओं को दूर करने की जरूरत
भारत देश की संस्कृति परोपकारी आदर्शों, संस्कारों के इर्द-गिर्द निर्मित है - अंग दान महादान पर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत में हम पिछले कुछ वर्षों से देखें तो स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, रक्षा इत्यादि सहित अनेक क्षेत्रों में जो विशेष दिवस, साप्ताहिक, पख़वाड़ा, महत्वकांक्षी दिवस के रूपमें जो एक अभियान के तहत सेवाएं की जा रही है वह रणनीतिक रोडमैप बनाकर, आम जनता के हित और जनभागीदारी के पहल को दृष्टिगत रखते हुए किए जा रहे हैं अगर हम हाल के दिनों की चर्चा करें तो, वैक्सीनेशन अभियान जिसका अभी रोज़ करीब एक करोड़ के ऊपर डोज़ लग रहे हैं, शिक्षा पर्व, कृषि पर्व, और अभी 25 अगस्त से 8 सितंबर 2021 तक नेत्रदान को बढ़ावा देने 36 वा राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े जो अंधता व दृष्टि तथा नियंत्रण कार्यक्रम के तहत मनाया गया। जिसमें पूरे भारत के हरजिले से नागरिकों को नेत्रदान के प्रति जागरूक किया गया जो काबिले तारीफ़ कार्य है। अब बारी आम नागरिकों की है कि इस तथ्य को समझें और नेत्रदान के प्रति भ्रांतियां मिथक, व झूठी मान्यताओं को दरकिनार कर नेत्रदान, अंगदान के लिए आगे आएं और मानवता के हाथ में हाथ देकर मानवता के सजग कार्यों में आगे बढ़े...। साथियों बात अगर हम हमारे देश में कार्निया की जरूरत की करें तोभारत में हर साल करीब दो लाख कार्निया प्रत्यारोपण की जरूरत है। प्रत्येक साल 20 हज़ार मामले जुड़ जाते हैं। जनमानस को जागरूक करने के लिए 25 अगस्त से 8 सितंबर तक राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। इस बार 36वां नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जा रहा है।...साथिया बात अगर हम नेत्रदान की करें तो एक स्वास्थ्य विभाग के सीएमओ के अनुसार, नेत्रदान से मृत व्यक्ति का चेहरा खराब नहीं होता। धर्म गुरुओं, मौलानाओं, जनप्रतिनिधियों, धार्मिक संस्थाओं, सेवाभावी संगठनों से जुड़े लोग नेत्रदान के प्रचार-प्रसार में सहायक और प्रेरणास्रोत हो सकते हैं। मृत्यु के बाद नेत्रदान जरूर करें। इसके लिए इच्छुक व्यक्ति सिविल अस्पताल में पहुंचकर, निर्धारित फार्म भर सकते हैं। डाॅक्टराें के अनुसार स्वस्थ व्यक्ति की मृत्यु के 6 घंटे के भीतर ही कार्निया लिया जा सकता है। एक व्यक्ति की आंखों से दो नेत्रहीन लोगों की रोशनी लौटाई जा सकती है...। साथियों बात अगर हम भारत के उपराष्ट्रपति के 36 वें राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े के समारोह में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उपराष्ट्रपति ने, समारोह में बोलते हुए, डोनर कॉर्निया टिश्यू की मांग और आपूर्ति के बीच भारी अंतरपर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह दुःखद है कि प्रत्यारोपण के लिए डोनर कॉर्निया टिश्यू की कमी के कारण बहुत सारे लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं। उन्होंने कहा कि यह समय की मांग है कि लोगों में नेत्रदान के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए। उन्होंने डोनर टिश्यू की मांग और आपूर्ति के बीच की खाई को पाटने के लिए एक संरचित नेत्र-बैंकिंग प्रणाली की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने इसके लिए आम लोगों में जागरूकता बढ़ाने, डोनर टिश्यू दान करने वाले को सुविधाजनक व्यवस्था प्रदान करने और समान वितरण प्रणाली सुनिश्चित करने पर जोर दिया। उन्होंने इस बात की ओर इशारा करते हुए कहा कि महामारी के कारण कॉर्नियल पुनर्प्राप्ति पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण कॉर्नियल प्रत्यारोपण के लिए आवश्यक टिश्यू की कमी हो गई है और बैकलॉग मामले बढ़ गए हैं। उन्होंने कहा कि टिश्यू उपलब्धता में संकट को दूर करने के लिए लंबे समय तक संरक्षण जैसे अभिनव उपाय और वैकल्पिक शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं पर विचार किया जाना चाहिए जिनमें डोनर टिश्यू की आवश्यकता नहीं होती है। जिस तरह से कोविड-19 के बारे में हमारी समझ में सुधार हुआ है, ठीक उसी तरह से हमें नेत्र-बैंकिंग और टिश्यू पुनर्प्राप्ति के संबंध में दिशानिर्देशों को संशोधित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यह देखते हुए कि बहुत से लोग मिथकों और झूठी मान्यताओं के कारण अपने मृत परिवार के सदस्यों की आंखें दान करने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। ऐसे में उन लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए कि उनकी आंखें दान करने के नेक कार्य से कॉर्नियल ब्लाइंड लोगों को देखने में मदद मिलेगी जिससे वे इस सुंदर दुनिया को फिर से देख पाएंगे। अगर हम सभी अपनी आंखें दान करने का संकल्प लें, तो हम कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा कर रहे सभी रोगियों का इलाज कर सकते हैं। उन्होंने कहा, यह एक प्राप्त करने योग्य लक्ष्य है। इसलिए, हमें इसे पूरा करने के लिए अथक प्रयास करना चाहिए। यह दोहराते हुए कि शेयर एंड केयर भारतीय दर्शन का मूल सिद्धांत है, उन्होंने कहा, हमारी संस्कृति एक ऐसी संस्कृति है जहां शिबी और दधीचि जैसे राजाओं और ऋषियों ने अपने शरीर दान किए थे। ये उदाहरण हमारे समाज के मूल मूल्यों,आदर्शों और संस्कारों के इर्द-गिर्द निर्मित हैं। उन्होंने लोगों को प्रेरित करने और अंगदान को बढ़ावा देने के लिए उन मूल्यों और कहानियों को आधुनिक संदर्भ में फिर से परिभाषित करने का आह्वान किया कि, अंग दान करने से न केवल एक व्यक्ति को अधिक पूर्ण जीवन जीने में मदद मिलती है, बल्कि दूसरों के लिए समाज की भलाई के लिए काम करने के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत होता हैं। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे के नेत्रदान को बढ़ावा देने 36 वां राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा काफी सफल और सराहनीय रहा परंतु ग्रामीण आबादी का एक बहुत बड़ा वर्ग गुणवत्तापूर्ण नेत्र देखभाल से अभी भी वंचित है। नेत्रदान के बारे में मिथकों, झूठी मान्यताओं को दूर करने की अभी जरूरत है। भारत देश की संस्कृति परोपकारी आर्दशों, संस्कारों के इर्द-गिर्द निर्मित है, इसलिए अंग दान महादान पर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।
संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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