भारत की अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि - चार और आर्द्र स्थलों को अंतरराष्ट्रीय महत्व के आर्द्र स्थलों की रामसर सूची में जोड़ा गया - अब रिकॉर्ड 46 स्थल हुए | #NayaSaberaNetwork



मानव उत्तरजीविता के लिए आवश्यक अब भारत में रिकॉर्ड 46 आर्द्र स्थल हुए जो भारत के हर नागरिक के लिए एक गर्व की बात - एड किशन भावनानी
नया सबेरा नेटवर्क
गोंदिया - भारत कुछ वर्षों से बहुत तेजी के साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों की ओर बढ़ रहा है, जिससे हर भारतीय के मन में अपने भारतीय होने का गर्व ज़जबा और सम्मान महसूस हो रहा है। वहीं भारत की इस उपलब्धियों की गति देखकर विश्व हैरान है और भारत की ओर सकारात्मकता से दोस्ती के हाथ बढ़ा रहा है तथा अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में विशेष महत्व दिया जा रहा है। हालांकि कोरोना महामारी के कारण कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, परंतु सभने मिलकर जाबांजी से मुकाबला कर जंग जीतने की ओर कदम बढ़ा दिए हैं।...साथियों बात अगर हम चार और भारतीय आर्द्र स्थलों को अंतरराष्ट्रीय महत्व के आर्द्र स्थलों की रामसर सूची में शामिल करने की करें तो, अब भारत के कुल 46 स्थल इस सूची में शामिल हो चुके हैं, इन स्थलों में ओडिशा स्थित चिल्का झील, राजस्थान स्थित केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, पंजाब स्थित हरिके झील, मणिपुर स्थित लोकतक झील और जम्मू - कश्मीर स्थित वुलर झील शामिल हैं। पूरी दुनिया में 2 फरवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस के रूपमें मनाया जाता है, गौरतलब है कि आर्द्रभूमि दिवस का आयोजन लोगों और हमारे ग्रह के लिये आर्द्रभूमि की महत्त्वपूर्ण भूमिका के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने के लिये किया जाता है। जो एक गर्व की बात है...। साथियों आर्द्र स्थल,याने नमी या दलदली भूमि वाले क्षेत्र को आर्द्रभूमि या वेटलैंड कहा जाता है। ये वो  क्षेत्र होते हैं जहां भरपूर नमी पाई जाती है। इसके कई लाभ हैं। यह पानी को प्रदूषण मुक्त बनाती है। यह वह क्षेत्र होते हैं, जहां वर्ष भर आंशिक रूप से या पूर्णतः पानी भरा रहता है। भारत में आर्द्रभूमि ठंडे और शुष्क इलाकों से लेकर मध्य भारत के कटिबंधीय मानसूनी इलाकों और दक्षिण के नमी वाले इलाकों तक फैली हुई है।...साथियों बात अगर हम इस रामसर सूची के इतिहास कीकरें तो ईरान के शहर रामसर में 2 फरवरी सन् 1971 को हुए सम्मेलन में प्रतिभागी राष्ट्रों द्वारा आर्द्रभूमियों के संरक्षण सेसंबंधित अभिसमय पर हस्ताक्षर किया गया। यह समझौता रामसर अभिसमय के नाम से विख्यात हुआ। अभिसमय की मेजबानी ईरान के पर्यावरण विभाग द्वारा की गयी। पानी से संतृप्त (सचुरेटेड) भूभाग को आर्द्रभूमि कहते हैं।...साथियों बात अगर हम इस विषय पर पीएम के ट्वीट की करें तो, ट्वीट में कहा,यह हमारे लिए गर्व की बात है कि चार भारतीय स्थलों को रामसर मान्यता मिली है। यह एक बार फिर प्राकृतिक आवासों को संरक्षित करने, वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण की दिशा में काम करने और एक हरित ग्रह के निर्माण संबंधी भारत के सदियों पुराने लोकाचार को प्रकट करता है और अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियों के रूप में जोड़ा गया है।...साथियों बात अगर हम इस विषय पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री के ट्वीट की करें तो, उन्होंने कहा पीएम की पर्यावरण के प्रति चिंता के कारण भारत में आर्द्रभूमियों की देखभाल के तरीके में समग्र सुधार हुआ है। हमें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि चार और भारतीय आर्द्रभूमियों को अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियों के रूप में रामसर की मान्यता मिली है। उन्होंने कहा गुजरात के थोल एवं वाधवाना और हरियाणा के सुल्तानपुर एवं भिंडावास को रामसर ने मान्यता दी है। इन स्थलों से आच्छादित सतह क्षेत्र अब 1,083,322 हेक्टेयर हो गया है...। साथिया बात अगरहम आर्द्र भूमिकी करें तो आर्द्रभूमियों से (वेटलैंड्स) भोजन पानी, रेशा (फाइबर), भूजल का पुनर्भरण, जल शोधन, बाढ़ नियंत्रण, भूमि के कटाव का नियंत्रण और जलवायु विनियमन जैसे महत्वपूर्ण संसाधनों और इको-सिस्‍टम सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्राप्त होती हैं। वस्तुतः ये क्षेत्र पानी का एक प्रमुख स्रोत हैं और मीठे पानी की हमारी मुख्य आपूर्ति आर्द्रभूमि की ऐसी उन श्रृंखलाओं से आती है जो वर्षा को सोखने और भूजल को फिर से उसी स्तर पर लाने (रिचार्ज करने)में मदद करती है। दरअसल वेटलैंड (आर्द्रभूमि) एक विशिष्ट प्रकार का पारिस्थितिकीय तंत्रहै तथा जैव-विविधताका एक महत्त्वपूर्ण अंग है। जलीय एवं स्थलीय जैव-विविधताओं का मिलन स्थल होनेके कारण यहाँ वन्यप्राणी प्रजातियों, वनस्पतियों की प्रचुरता पाए जानेकी वज़ह से वेटलैंड समृ़द्ध पारिस्थतिकीय तंत्र है। आज के आधुनिक जीवन में मानव को सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन से है और ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि हम अपनी जैव-विविधता का सरंक्षण करें। पृथ्वी पर जीवों के विकास की एक लंबी कहानी है और इस कहानी का सार यह है कि धरती पर सिर्फ हमारा ही अधिकार नहीं है अपितु इसके विभिन्न भागों में विद्यमान करोड़ों प्रजातियों का भी इस पर उतना ही अधिकार है जितना कि हमारा। नदियों, झीलों, समुद्रों, जंगलों और पहाड़ों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के पादपों एवं जीवों (समृद्ध जैव-विविधता) को देखकर हम रोमांचित हो उठते हैं।...साथियों बात अगर हम चारों आदर्श स्थलों की करें तो पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, (1) भिंडावास वन्यजीव अभयारण्य, हरियाणा की सबसे बड़ी ऐसी आर्द्रभूमि है जो मानव निर्मित होने के साथ ही मीठे पानी वाली आर्द्रभूमि है। 250 से अधिक पक्षी प्रजातियां पूरे वर्ष इस अभयारण्य का उपयोग अपने विश्राम एवं प्रजनन स्थल के रूप में करती हैं। यह साइट  मिस्र के लुप्तप्राय गिद्ध, स्टेपी ईगल, पलास के मछली (फिश) ईगल और ब्लैक-बेलिड टर्न सहित विश्व स्तर पर दस से अधिक खतरे में आ चुकी प्रजातियों को शरण देती है। (2) हरियाणा का सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान मिलने वाले पक्षियों, शीतकालीन प्रवासी और स्थानीय प्रवासी जलपक्षियों की 220 से अधिक प्रजातियों की उनके अपने जीवन चक्र के महत्वपूर्ण चरणों में आश्रय देकर सम्भरण करता है। इनमें से दस से प्रजातियाँ अधिक विश्व स्तर पर खतरे में आ चुकी हैं, जिनमें अत्यधिक संकट में लुप्तप्राय होने की कगार पर आ चुके मिलनसार टिटहरी (लैपविंग) और लुप्तप्राय मिस्र के गिद्ध, सेकर फाल्कन,पलास की मछली(फिश) ईगल और ब्लैक-बेलिड टर्न शामिल हैं। (3) गुजरात की थोल झील वन्यजीव अभयारण्य पक्षियों के मध्य एशियाई उड़ान मार्ग (फ्लाईवे) पर स्थित है और यहां 320 से अधिक पक्षी प्रजातियां पाई जा सकती हैं। यह आर्द्रभूमि 30 से अधिक संकटग्रस्त जलपक्षी प्रजातियों की  शरण स्थली भी है, जैसे कि अत्यधिक संकट में आ चुके लुप्तप्राय सफेद-पंख वाले गिद्ध और मिलनसार टिटहरी (लैपविंग) और संकटग्रस्त सारस बगुले (क्रेन), बत्तखें (कॉमन पोचार्ड) और हल्के सफ़ेद हंस (लेसर व्हाइट-फ्रंटेड गूज़)। (4) गुजरात में वाधवाना आर्द्रभूमि (वेटलैंड) अपने पक्षी जीवन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रवासी जलपक्षियों को सर्दियों में रहने के लिए उचित स्थान प्रदान करती है। इनमें 80 से अधिक ऐसी प्रजातियां हैं जो मध्य एशियाई उड़ान मार्ग (फ्लाईवे) में स्थान -स्थान पर प्रवास करती हैं। इनमें कुछ संकटग्रस्त या संकट के समीप आ चुकी प्रजातियां शामिल हैं जैसे लुप्तप्राय पलासकी मछली-ईगल, दुर्बल संकटग्रस्तवसामान्य बत्तखें (कॉमन पोचार्ड) और आसन्न संकट वालेडालमेटियन पेलिकन,  भूरे सर वाली (ग्रे-हेडेड) फिश और फेरुगिनस डक। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत की अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि बहुत विस्तृत हुई है और उसमें चार और आंध्र स्थलों को अंतरराष्ट्रीय महत्व के आंध्र स्थलों की रामसर सूची में जोड़ दिया गया है जो एक गर्व की बात है।

-संकलनकर्ता- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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