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शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने से भारत का अंतरराष्ट्रीय महत्व बढ़ा है - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत में वर्ष 2021 की शुरुआत से ही कोरोना महामारी की दूसरी लहर की आहट शुरू हो गई थी। परंतु मार्च के आते-आते इस दूसरी लहर ने इतना विभीषक रूप ले लिया, जिसका किसी को अंदेशा नहीं था। खैर अब स्थिति नियंत्रण में आ चुकी है और भारत अभी करीबकरीबअनलॉक की ओर बढ़ गया है। इन कठिन परिस्थितियों में भी भारत ने अपना अंतरराष्ट्रीय दबदबा बना के रखा। पूरा विश्व भी महामारी में भारत की सहायता के लिए उमड़ पड़ा और भारत भी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में, बैठकों, सम्मिटों में लगातार भाग लेता रह। पिछले एक सप्ताह में ही चार बड़े सम्मिट में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इनमें जी-7 शिखर सम्मेलन, संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण भूमिशरण और सूखे पर सम्मेलन, विवाटेक सम्मेलन प्रमुख हैं और अभी 23-24 जून 2021 को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) सम्मिट में भी शामिल होने जा रहा है...। बात अगर हम एससीओ याने शंघाई सहयोग संगठन की करें तो यह, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) आठ देशों का समूह हैं। इसके विशेष रूप से 8 सदस्य देश हैं। इनमें रूस, चीन, भारत, पाकिस्तान और चार मध्य एशियाई देश अर्थात कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान हैं। वर्ष 2017 में भारत और पाकिस्तान आधिकारिक रूप से पूर्ण सदस्य के रूप में समूह में इस संगठन में शामिल हुए और नवंबर 2020 में, भारत ने शंघाई सहयोग संगठन के प्रमुखों की सरकारी बैठक की मेजबानी की थी, जिसकी अध्यक्षता भारतीय उपराष्ट्रपति ने की थी। यह आर्टिकल बनाने में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की साइट्स और एएनआई की सहायता ली गई है। पिछले साल 30 नवंबर 2020 को शंघाई सहयोग संगठन (एस सीओ) के शासनाध्यक्षों (सरकारों के प्रमुखों या प्रधानमंत्रियों) की परिषद की वर्चुअल बैठक हुई थी ये एससीओ के शासनाध्यक्षों (सीएचजी) की 19वीं बैठक थी,इसकी अध्यक्षता भारत ने की थी। 2017 में भारत के एससीओ का सदस्य बनने के बाद ये पहली बैठक थी, जिसकी अध्यक्षता भारत ने की थी और अब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दुशांबे में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में हिस्सा लेने अगले सप्ताह ताजिकिस्तान जाएंगे। यह बैठक 23 और 24 जून को होगी। बता दें कि वर्ष 2021 में ताजिकिस्तान इस समूह का अध्यक्ष है। बता दें कि, भारत,वर्ष 2005 में इस संगठन का पर्यवेक्षक बना था। पर्यवेक्षक के तौर पर भारत के विदेश मंत्री या ऊर्जा मंत्री (एससीओ के कई देशों में तेल, गैस, कोयला औरयूरेनियम के विशाल भंडारों को देखते हुए) एससीओ के दोनों ही शिखर सम्मेलनों यानी शासनाध्यक्षों (सीएचजी) और राष्ट्राध्यक्षों (सीएचएस) की बैठक में शामिल होता रहा था। भारत की संसदीय प्रणाली के तहत, यहां पर कार्यपालिका के वास्तविक अधिकार देश के प्रधानमंत्री के पास होते हैं। इसीलिए, भारत की ओर से प्रधानमंत्री ही सीएचएस की बैठकों में शामिल होते आए हैं। एससीओ का पर्यवेक्षक रहने के दौरान, भारत कभी भी इसके शासनाध्यक्षों या राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में शामिल नहीं हुआ था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री सिर्फ़ एक बार शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में वर्ष 2009 में तब शामिल हुए थे, जब रूस ने अपने येकाटेरिनबर्ग शहर में ब्रिक्स और एससीओ के शिखर सम्मेलन साथ-साथ आयोजित किए थे। अब भी कई देश ऐसे हैं जो एससीओ के स्थायी सदस्य नहीं हैं, लेकिन इस संगठन से जुड़े हैं। ईरान, अफगानिस्तान, बेलारूस और मंगोलिया ऑब्जर्वर के रूप में इस संगठन से जुड़े हैं। जबकि आर्मेनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की डॉयलॉग पार्टनर के रूप में एससीओ का हिस्सा है...। बात अगर हम भारत के सदस्य बनने की करेंतो भारतके लिए एससीओ का सदस्य बने रहने का बसे बड़ा फ़ायदा ये है कि, इसके माध्यम से वो मध्य एशिया के देशों के साथ मज़बूत संबंध बनाए रख सकता है। मध्य एशियाई देश हमारे व्यापक पड़ोसी क्षेत्र में आते हैं और हज़ारों वर्षों से इन देशों के साथ भारत के ऊर्जावान और बहुआयामी संबंध रहे हैं। अपनी सक्रिय भागीदारी और तमाम गतिविधियों में मानवीय पहलुओं को केंद्र में रखकर भारत ने शंघाई सहयोग संगठन के देशों के बीच अधिक व्यापारिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा दिया है। भारत के लिए एससीओ का सदस्य बने रहने का बसे बड़ा फ़ायदा ये है कि इसके माध्यम से वो मध्य एशिया के देशों के साथ मज़बूत संबंध बनाए रख सकता है। भारत ने इस क्षेत्र में शांति और समृद्धि को भी बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभाई है। भारत के प्रयासों से स्पष्ट है कि वो एससीओ के सदस्य के रूप में सकारात्मक, प्रभावी और अग्रणी भूमिका निभाकर, सभी देशों के बीच भागीदारी का विस्तार करना चाहता है। इन देशों से संपर्क बढ़ाने से भारत को व्यापार, आर्थिक प्रगति और विकास में सहयोग मिलेगा। उल्लेखनीय है कि औपचारिक तौर पर शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना 15 जून 2001 में हुई थीं। संगठन की स्थापना के बाद इसका मुख्य उद्देश्य आतंकवाद से लड़ाई समेत ऊर्जा पूर्ति से जुड़े मुद्दों पर केंद्रित हो गया था। साथ ही अन्य आर्थिक और समसामयिक मुद्दों पर आपसी सहयोग बनाना भी संगठन का एक अहम मकसद है। अतः उपरोक्त पूरे विवरण का अगर हम अध्ययन कर और उसका विश्लेषण करें तो शंघाई सहयोग संगठन सम्मिट का प्रतिनिधित्व एक कुछल रणनीतिकार और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार करेंगे यह भारत के लिए बहुत सकारात्मक और सुरक्षित विश्वसनीय बात हैं।
संकलनकर्ता- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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