नया सबेरा नेटवर्क
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अर्ध रजनी थी माता कौशिल्या जगी
कर्ण कुहरों में पदचाप उनके पड़ी
नीद से हैं उठी जाके देखी वहां
शून्य के भाव में श्रुतिकीर्ती खड़ी।
माँ को देखा बहू जब सहम सी गई
सीस चरणों में धर उसने वन्दन किया
पूंछा मां ने बहू , शत्रुघन है कहाँ
हाल बेहाल ऐसे है तू क्यों किया?
नेत्र से नीर बरबस छलक हीं पड़े
माँ को हिय से लगा वह बिलखने लगी
रोके श्रुतिकीर्ति ने यह बता ही दिया
वर्ष तेरह से दर्शन में आंखें लगी।
राम केसंग बन को लखन जब गये
मेरे पति के तभी से न दर्शन हुए
सुनके मां का हृदय मानो फट सा गया
माँ संग सेवक उन्हें खोजने चल दिए।
खोजते खोजते जाके पहुंची वहां
द्वार दिशि था अवध गांव नन्दी जहां
शत्रुघन सो रहे शोक निद्रा लिए
सिर पे उपधान रखकर शिला का वहां।
स्नेह से माँ ने सिर पर धरा हाँथ जब
शत्रुघन माता चरणों में जा गिर पड़े
माँ ने पूंछा अवध छोड़ तुम क्यों यहां
राज सुख भोग हैं सब अवध में बड़े।
नेह का नीर बरबस छलक हीं गया
शत्रुघन मातु से बात कुछ यूँ कहा
राम लक्ष्मण सिया संग वन को गये
पादुका ले भरत करते तप हैं यहाँ।
राज वैभव अवध का जो उपभोग है
क्या विधाता बनाया है मेरे लिए
भाई सोता सदा जिसका कुश काटों पर
पुष्प की सेज मेरी चिता सम लिए।
भोग लिप्सा नहीं त्याग की यह कथा
प्रेम की भावना का ए संदेश है
राज्य को त्यागकर राम बन को गए
यश भरत का बढ़ा यह वही देश है।
नारियां अग्रणी भी रही हैं सदा
वेदों ने उनकी महिमा का गायन किया
माण्डवी सीता श्रुतिकीर्ति संग उर्मिला
सबने मिलकर यहाँ धर्म पालन किया।
नीद को त्याग लक्ष्मण चरण रत रहे
प्रीति से उर्मिला ने कठिन तप किया
वर्ष चौदह लखन का चरण ध्यान कर
प्रज्वलित दीप की लौ न बुझने दिया।
शक्ति संधान जब लक्ष्मण पर हुआ
वीर बजरंगी बूटी को लाने गये
लेके संजीवनी मग अवध हो चले
तीर मारे भरत, भूमि पर गिर गये।
मुख से हे राम बोले हैं हनुमान जब
नाम सुनकर भरत जी हैं ब्याकुल हुए
राम भक्ती महौषधि भरत ने लिया
करके उपचार हनुमान जीवित किए।
प्राण संकट में हैं अब लखण लाल के
वीर बजरंगी ने युद्ध गाथा कही
सुनते कौशिल्या हीं बोल बरबस पड़ी
बिन लखन राम आएं अयोध्या नहीं।
बात सुनकर सुमित्रा खड़ी हो गई
हे पवन सुत यह संदेश कहना नहीं
राम के काम से गर लखन मर गए
भेज दूंगी अभी शत्रुघन को वहीं।
राम सेवा में यदि दोनो मर भी गए
धन्य जीवन सफल उनका हो जाएगा
शान्त्वना कोख को अपनी दे लूंगी मैं
राम को देख जीवन गुजर जाएगा।
भाव करूणा सुमित्रा की वाणी में थी
रो पड़े अंजनी सुत खड़े रह गये
आंखों से आंसू सबके छलक हीं पड़े
उर्मिला हिय मुदित शांत मन को लिए।
देखा हनुमान ने उर्मिला भाव को
मन में विस्मय लिए उर्मिला से कहा
देवी मन है मुदित इसका कारण है क्या
प्राण संकट में पति का तुम्हारे वहां।
इस समय सूर्य कुल में है संकट बड़ा
रात के बाद दुर्दिन घड़ी आएगी
सूर्य उगते लखनकुल का दीपक है जो
प्राण होगा नही ज्योति बुझ जाएगी।
हर्ष विस्मय लिए उर्मिला ने कहा
मेरा दीपक जो है मेरा सिन्दूर है
पड़ नहीं सकता संकट उसे उम्र भर
राम का भक्त सेवक महाशूर है।
सूर्य में इतनी शक्ति नहीं आज है
मन हो तो आप विश्राम कर लीजिए
लंका मे आप जब तक नहीं पहुंचेंगे
सूर्योदय न होगा यह सुन लीजिए।
मेरे पति सो रहे राम की गोंद में
काल उनको कभी छू नहीं पाएगा।
प्रभु की लीला है स्वामी मेरे सो रहे
देर होगा तो विश्राम हो जाएगा।
शक्ति स्वामी को मेरे लगी हीं नहीं
पीड़ा तो उसकी उनको मिलेगी कहाँ
श्वास में उनके बसते श्री राम हैं
भक्त भी आप हैं जानते सब यहाँ।
सूर्योदय अभी होने वाला नहीं
धैर्य रखिए प्रकट हो नहीं पाएगा
भानु ने गर दिखाया पराक्रम यहां
रेख सिन्दूर से मेरे जल जाएगा।
राम का राज्य आया धरा पर यहां
देवियों की तपस्या का परिणाम है
उर्मिला सीता श्रुतिकीर्ति संग माण्डवी
नाम हैं चार जो देवी के धाम हैं।
रचनाकार- डॉ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार
सम्पर्क सूत्र 9918357908
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