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आज का फासला कल रवानी देगा,
सबकी सांसों को वो जवानी देगा।
झुलसो न झुलसाओ पूरे चमन को,
हर होंठों को वो नई कहानी देगा।
गर आज बोओगे,ख्वाबों के दरख्त,
यक़ीनन वो सागर फिर पानी देगा।
इन रंगिनियों को न बिखराओ लोगों,
बची ये जान, तो वो निशानी देगा।
चीरकर वायरस,आगे निकल जाओ,
वो फिर से परियों की कहानी देगा।
प्यार की हरियाली खोने न पाए,
बंजर सांसों को जिंदगानी देगा।
पड़ोसी बस, पड़ोसी की खैर मनाये,
वो कल फिर दुआ आसमानी देगा।
रात के पांव में फिर बंधेगे घूँघरू,
वो मेरी फिर दुनिया पुरानी देगा।
डूबेंगे लोग जामभरी आँखों में,
वो चढ़ता नया फिर से पानी देगा।
खुदा महफूज रखे इस क़ायनात को,
वो महकती फिर से रातरानी देगा।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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