भारतीय संविधान में स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार के रूप में स्पष्टतः शामिल करने का रणनीतिक रोडमैप बनाया जाए | #NayaSaberaNetwork

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नया सबेरा नेटवर्क
भारतीय संविधान में स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में चिन्हित करना कोविड-19 ग्रस्त परिस्थितियों की मांग - एड किशन भावनानी
गोंदिया - कोविड-19 ने वैश्विक स्वास्थ्य सेवाओं पर इतना दबाव बनाया कि मानवीय स्वास्थ्य सेवाओं में कमी साफ झलकने लगी, क्योंकि महामारी ने इतनी तीव्र गति से हमला किया कि, वैश्विक मानव बड़ी तेजी के साथ कोरोना संक्रमित हुए और उनके लिए उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं में स्वाभाविक गैप पैदा होना शुरू हो गया। हालांकि इस अनजान महामारी से मुकाबला करने के लिए सभी देशों ने बड़ी तेजी से स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बढ़ाने में पूरी ताकत झोंक दी और महामारी पर काबू पाने में कामयाबी की ओर बढ़ रहे ...बात अगर हम भारत की करें तोकदिनांक 24 मई 2021 को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी कोरोना बाधित आंकड़े पिछले 1 माह यानी 24 अप्रैल 2021 के आंकड़ों से करीब करीब आधे थे और कोरोना से पीड़ितों का रेट भी करीब करीब आधा था और दिनांक 25 मई 2021 को आए डाटा अनुसार संक्रमितों की संख्या दो लाख के नीचे आई है जो पिछले 40 दिनों में सबसे कम है ऐसी जानकारी टीवी चैनल द्वारा दी गई है। याने हम संक्रमण पर काबू पाने की ओर बढ़ रहे हैं, जो अच्छे और सकारात्मक संकेत की ओर इशारा कर रहे हैं।....बात अगर हम स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार के रूप में चिन्हित करने की करें तो,, साथियों, हम सब ने 2020  से कोरोना महामारी के प्रकोप को देख रहे हैं, कितनी  भयानक रूप से व्यक्तियों को घातकता से संक्रमण द्वारा पीड़ित किया जा रहा है। कई परिवारों के सदस्यों को इस महामारी ने काल के गाल में पहुंचाया। साथियों, हमें अभी स्वास्थ्य का बहुत महत्व समझ में आया और सोच इस दिशा की ओर बढ़ गई के स्वास्थ्य को भी क्यों न मौलिक अधिकारों में स्पष्टतः दर्जा दिया जाए। वैसे तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 की उदार व्याख्या करते हुए इसके अंतर्गत स्वास्थ्य के अधिकार को एक मौलिक अधिकार माना गया है क्योंकि आर्टिकल 21 हमें जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है और भी अनेक जन स्वास्थ्य से संबंधित भी है। परंतु भारतीय संविधान का आर्टिकल 21, मौलिक रूप से स्वास्थ्य अधिकार को भी पहचान देता है। वही भारतीय संविधान का अनुच्छेद 47 की भी पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने के राज्य के कर्तव्य के विषय में बात करता है। वही यह भी सत्य है कि जीवन के अधिकार, जो सबसे कीमती अधिकार माना गया है और अन्य सभी अधिकारों की संभावनाओं को जन्म देता है उसकी व्याख्या एक व्यापक और विस्तृत प्रकार से की जानी चाहिए और उच्चतम तथा उच्च न्यायालय द्वारा भी अपने अपने निर्णयों में इसकी सकारात्मक उच्च व्याख्या भी की है और अनेक जजमेंट में हमें देखने को मिला भी है। जैसे विंसेंट पनि कुर्लानगरा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य 1987 एआईआर 990 का मामला हो, या बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया 1984 सीबीएसई लिमिटेड बनाम बोस 1992 के मामले में श्रमिकों के स्वास्थ्य के बारे में टिप्पणी करते हुए यह भी कहा गया कि स्वास्थ्य के अधिकार को संविधान में आर्टिकल 21 द्वारा गारंटी किया गया है। परंतु यह भी कटु सत्य है कि स्वास्थ्य के अधिकार को एक मौलिक अधिकार के रूप में चिन्हित नहीं किया गया है। परंतु वास्तविक स्थिति यह है कि, एक स्वास्थ्य शरीर सिर्फ रोग और दुर्बलता के कारण ही नहीं बल्कि संपूर्ण शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक आरोग्य की अवस्था को भी माना जाता है और स्वास्थ्य सेवा जिससे देश के विकास के महत्वपूर्ण मानकों में से एक माना गया है इसीलिए स्वास्थ्य के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना चाहिए जिसकी जरूरत आर्थिक रूप से पिछड़ों को अधिक होती है, जबकि आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्तियों को इन अधिकारों की अपेक्षाकृत जरूरत कम पड़ती है क्योंकि वह उच्च इलाज को धनबल से उपचार करने में सक्षम होते हैं। अभी हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी 47 वीं वर्ल्ड हैल्थ असेम्बली का आयोजन किया था और जिसमें अनेक देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों ने भी उपस्थिति दर्ज कराई जिसका विषय था, कोविड-19 और बच्चे, जिस विषय पर सभी ने अपने अपने विचार रखे। भारत के नोबेल पुरस्कार विजेता ने भी स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार का दर्जा देने की बात का समर्थन किया है और कहा है कि शुरू में हम मान रहे थे कि यह संकट सिर्फ वयस्कों तक होगा लेकिन अभी बच्चे भी संक्रमित हो रहे हैं। हालांकि 24 मई 2021 को स्वास्थ्य मंत्रालय की  प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक प्रसिद्ध चिकित्सक ने कहा कि तीसरी लहर में बच्चों पर इंफेक्शन होने के प्रमाण अभी नहीं आए हैं और यह सब अफवाहें हैं। फिर भी बच्चों को संक्रमण से बचाना होगा और यही बात प्रधानमंत्री महोदय ने भी कहीं है कि गांव और बच्चों को इस महामारी के संक्रमण से बचाना है। अतः उपरोक्त पूर्व विवरण का अगर अध्यन कर और विश्लेषण करें तो, हम महसूस करेंगे कि हालांकि हमें भारतीय संविधान का व आर्टिकल 21 में और सुप्रीम कोर्ट के जजमेंटों में स्वास्थ्य की मौलिक अधिकार के रूप में व्याख्या दिखाई गई है परंतु कोविड-19 के दुषपरिणामों  को देखते हुए आज इसकी अति आवश्यक जरूरत आन पड़ी है। भारतीय संविधान में स्वास्थ्य को मौलिक अधिकारों के रूप में स्पष्टतः चिन्हत करने को गंभीरता से लेकर उसके लिए रणनीतिक रोड मैप अभी से तैयार करना होगा तथा वर्तमान महामारी की तीव्रता को देखते हुए बच्चों को संक्रमण से पूरी ताकत के साथ बचाना होगा। 
संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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