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ऐ! फूलों का शहर,
ऐ! सितारों का शहर,
उठ तुझे महकना है।
न तू कभी रुका है,
न तू कभी झुका है।
खिज़ा में खिलकर फिर,
वक़्त तुझे बदलना है,
उठ तुझे महकना है।
ऐ! फूलों का.......
वो सुलगती चितायें,
ये जहरीली हवाएँ।
दम कोई न उखड़े,
सभी को बचाना है,
उठ तुझे महकना है।
ऐ! फूलों का......
चाँद से भी सुन्दर,
तू प्यार का समंदर।
वायरस के फन को,
तुम्हें ही कुचलना है,
उठ तुझे महकना है।
ऐ! फूलों का....
सड़कों पे हँसी खिले,
रुत कोई नयी चले।
सरपट दौड़े जिंदगी,
लहरों पे फिसलना है,
उठ तुझे महकना है।
ऐ ! फूलों का.....
वो चाँद फिर न भटके,
काल न उसको गटके।
गमों की भीड़ से,
बाहर निकलना है,
उठ तुझे महकना है।
ऐ! फूलों का.....
कुदरत का कहर ये,
ज़िन्दगी का सफर ये।
खिलखिलाए फिर हँसी,
उस दिशा में बढ़ना है,
उठ तुझे महकना है।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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