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यह वह समय है
जिसमें सुख बीत चुका है
दारुण विभीषिका
मुँह बाये खड़ी हुई है
हर आनेवाला दिन
आता है
और अधिक पाप लिए हुए
धरती का यौवन
छीज चुका है
*(आदिपर्व, महाभारत)
ऐसे समय में
पापी का उत्थान होता है
त्राहि त्राहि करती है प्रजा
आँख से नहीं
आत्मा से अंधा होता है
धृतराष्ट्र
उसे सिर्फ़ वही दिखता है
जो देखना चाहता है वह
जन उसके लिए संख्या है
संख्याएँ अमूर्त्त होती हैं
ज्यों ज्यों
वस्त्रहीन अन्नहीन धनहीन
होता है जन
धृतराष्ट्र का वैभव
बढ़ता जाता है और
आचरण घटता जाता है
धृतराष्ट्र
नहीं देख पाता है
आचरण अपना
और प्रभाव आचरण का
इसलिए
तटस्थ होता है धृतराष्ट्र
भीष्म कहते हैं
मनुष्य दास होता है अर्थ का
अर्थ किसी का दास नहीं
अर्थ के दास हैं
धर्म काम और मोक्ष
अर्थ ने व्यापार किया
दासों का और
ख़रीद लिया व्यास को
व्यास रच रहे हैं
नूतन महाभारत
इस बार सभी होंगे
पक्ष में दुर्योधन के
एक युयुत्सु को छोड़कर
इस बार भी
युयुत्सु करेगा आत्मघात
व्यास ने कहा
आत्मघात नियति है
युयुत्सु की
अतः हे भारत!
दुर्योधन को
मानकर विजयी
उसकी शरण में जाओ
इस बार वही वहन करेगा
योगक्षेम सबका
-हूबनाथ
*अनुवाद:डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी
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