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धार्मिक स्थान श्रद्धा सबुरी आस्था के प्रतीक - यहां छल, कपट, धोखाधड़ी का स्थान नहीं - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत एक धर्मनिरपेक्ष धार्मिक आस्था, धार्मिक स्थानों सेवाओं, मठ, मढ़ी, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च जैन मंदिरों, इत्यादि से सुशोभित विश्वप्रसिद्ध दार्शनिक स्थल देश है। जहां पूरे विश्व से सैलानी यह खूबसूरती देखने आते हैं जो भारत के लिए बहुत ही गौरव की बात है। भारत में उच्च स्तर के व्यक्ति से लेकर कम स्तर के व्यक्तित्व में धार्मिक आस्था व भाव कूट-कूट कर भरा है, क्योंकि यहां की मिट्टी ही ऐसी है, हालांकि कुछ नगणय प्रतिशत ही लोग हैं जो इस भाव से मेल नहीं खाते होंगे और उन लोगों के कारण ही धार्मिक सदभाव और श्रद्धा में विपरीत प्रभाव पड़ता है और जिनका अभी हाल के कुछ वर्षों में धार्मिक और धार्मिक संस्थाओं के प्रति रुझान बढ़ता गया है केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए। हम प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से देखते और सुनते,पढ़ते आ रहें हैं कि, किस तरह कुछ तथाकथित बाबाओं के ऊपर शासन प्रशासन ने सख्त लहजे को अपनाया। उस तरह के लोग लोगों का मूल उद्देश्य धर्म नहीं धन का होता है, जैसा कि कुछ समय से देखते हैं कि इस तरह के लोग धार्मिक व धार्मिक संस्थाओं की संपत्तियों, जमीन, जायदाद पर अपना कब्जा कर धन की ओर रुख किए रहते हैं।... इसी विषय से संबंधित एक मामला शुक्रवार दिनांक 5 फरवरी 2021 को माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट कोर्ट क्रमांक छह में माननीय न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंघल की सिंगल जज बेंच के समक्ष जमानत याचिका क्रमांक 8577/2020 याचिकाकर्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के रूप में धारा 439 सीआरपीसी में एफआईआर क्रमांक 0584/2019 धारा 406, 419, 420, 467, 468, 471, 506 आईपीसी के रूप में आया जिस पर माननीय बेंच ने अपने 6 पृष्ठों के आदेश में जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि,काउंटर एफिडेविट के अनुसार, ज़मानत याचिकाकर्ता पर 15 केस दर्ज हैं और अनुसंधान जारी है। रिकॉर्ड में यह भी पाया कि सेशन ट्रायल क्रमांक 46/1984 में आजीवन कारावास भी पाया है। उसके पहले भी उसे सेशन ट्रायल क्रमांक 242/1979 में भी आजीवन कारावास हुआ है।माननीय बेंच ने अपने अंतिम पड़ाव पॉइंट नंबर 20 में कहा कि धार्मिक और धार्मिक संस्थाओं की संपत्ति अपराधियों द्वारा हड़पना दुर्भाग्यपूर्ण है आदेश कॉपी के अनुसार,बेंच ने माफ़िया के पक्ष में जाली और गढ़े गए दस्तावेजों के आधार पर,मठ की संपत्ति बेचने के आरोप में गिरफ़्तार व्यक्ति द्वारा दाखिल जमानत आवेदन को खारिज कर दिया। जमानत याचिका खारिज करते हुए, बेंच ने कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपराधियों द्वारा धार्मिक और धर्मार्थ संस्थाओं की सम्पत्ति छीन ली जा रही है। अदालत से समुख़ ही मामला,धारा 439 सीआरपीसी के तहत एक नियमित जमानत आवेदक ने आईपीसी की धारा 406, 419, 467, 468, 471, 506 के आरोप तहत 2019 की प्राथमिकी संख्या 0584/2019 में जमानत मांगने के लिए दायर किया था।संक्षेप में तथ्य - शिकायतकर्ता ने मठ के एक महंत (उन्होंने दावा किया कि उन्हें वर्ष 2002 में महांत दास के उत्तराधिकारी घोषित किया गया था और 2016 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने भी उन्हें महांत दास का उत्तराधिकारी और उत्तराधिकारी घोषित किया था)। इसके अलावा, उन्होंने अपनी शिकायत में दावा किया कि बहुत से महंत लोग स्वयभू होकर मुख्य होने का दावा करते हैं कि वे मठ के महंत होने का दावा करते हैं। यह भी आरोप लगाया गया कि अभियोग-आवेदक, खुद को मठ को महंत के रूप में प्रस्तुत करते हुए, मठ की संपत्ति को अवैध रूप से और धोखे से जमीन माफियां होकर बेचने में व्यस्त थे। शिकायत में अभियुक्त-आवेदक के खिलाफ लंबित मामलों के कई उदाहरण दिए गए। इसके बाद, उसकी शिकायत के आधार पर, शिकायतकर्ता को धमकी देकर मठ की संपत्ति को अवैध रूप से खरीदा और बेचा गया, झूठे और गढ़े हुए दस्तावेजों का उपयोग करके अभियुक्त को एक ऍफ़आईआर पंजीकृत की गई। आरोपी द्वारा अपने बचाव में प्रस्तुत बहसें-अभियुक़्तों के वकील-आवेदक ने न्यायालय के समक्ष दलीलें प्रस्तुत किया-मुख्य ओरिजिनल महंत दास के निधन के बाद उन्होंने मठ के जेरी इंतिज्जाम के रूप में सफलता प्राप्त की और वह पुराने समय तक जमीन की संपत्तियों का जेरी-इंतिजकार है। आगे यह भी कहा गया कि ओरिजिनल महंत दास ने घोषणा पत्र निष्पादित किया था कि शिकायतकर्ता बेईमान था और वह जमीन और संपत्ति को मठ के अधिकार से वंचित करना चाहता था और शिकायतकर्ता महंत दास का चेला नहीं था, जैसा कि, उसके द्वारा दावा किया गया था। यह आगे प्रस्तुत किया गया कि उसके द्वारा बेची गई भूमि मठ को बनाए रखने और संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन के उद्देश्य से थी। अंत में, यह प्रस्तुत किया गया कि अभियुक्त-आवेदक खुद मठ की संपत्ति पर कब्जा कर रहा है और वह वर्तमान अभिग्रहण-आवेदक को अलग रखना चाहता है और इसलिए, उसके खिलाफ झूठे मामले संस्थित किए जा रहे हैं। दूसरी ओर, एएए ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि यह अपराध की जाँच में आया है कि आवेदक, धोखे से, जाली और बनाए गए दस्तावेज तैयार करने के बाद,मठ की संपत्ति को खुद मठ के महंत के रूप में पेश करके बेच रहा था, जबकि उसे संपत्ति बेचने का कोई अधिकार नहीं है।न्यायालय की टिप्पणियां- न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि ओरिजिनल महंत दास द्वारा दाखिल रिट याचिका में उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के बावजूद (जिसमें मठ की भूमि को निपटाने के बारे में ठहरने के लिए रोक दी गई) अभियोक्ता ने एक जाली न्यास विलेख, नामतः ठाकुर जी महाराज ट्रस्ट, और अपने सदस्यों को शिष्य (चेला) के रूप में दिखाया और उसे कोषाध्यक्ष घोषित किया। इसके अलावा, उसने मठ के पूरे धन का हस्तांतरण करना शुरू कर दिया और भू-स्वामित्व के पक्ष में जाली और गढ़े हुए दस्तावेजों के आधार पर धोखे से कई बिक्री कार्यों को निष्पादित किया और अपराध करने के लिए उसके विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य हैं। न्यायालय ने उन 15 मामलों को ध्यान में रखा जो आरोपी के खिलाफ पाए गए हैं और अन्य मामलों के संबंध में जांच चल रही है। इस प्रकार, अदालत ने टिप्पणी की, अभियोगी के लंबे आपराधिक इतिहास को देखते हुए और अपराध आयोग में उसकी सहभागिता जैसे कि आरोपी द्वारा मठ की सम्पत्ति को बिना किसी अधिकार या क्षमता के सक्रिय सहयोग में बिक्री करना एक गंभीर अपराध है। इसलिए, न्यायालय को अभियोक्ता को जमानत पर रिहा करने का कोई आधार नहीं मिला और उसका जमानत आवेदन अस्वीकार कर दिया गया।
संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एड किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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