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नेता या अधिकारी के पद समाप्ति पशचात, वह आम नागरिक के समकक्ष हो जाता है - समानता के सिद्धांत को सरकारों द्वारा लागू करना जरूरी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - प्रिन्ट वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से अक्सर सभी पार्टियों, नागरिकों को पढ़ने, सुनने में यह कई बार आया होगा कि फलां नेता या अधिकारी अपना पद समाप्त हो जाने या समर्पित हो जाने के बाद भी इतने सालों से अभी तक सरकारी बंगलों में जमे हुए हैं, या फिर उनके कार्यकर्ता या साथी उसका उपयोग करते हैं। यह सुनने पढ़ने में आम बात हो गई है। इस मुद्दे पर अभी हाल ही में कुछ नेताओं ने सरकारी बंगले खाली भी किए और दीवाल तोड़ने का मामला भी काफी गूंजा था। ऐसा नहीं है कि किसी एक पार्टी के शासनकाल में यह सब होता है हमने दशकों से देखा है कि अक्सर अनेक पार्टियों के नेता अपना शासन काल समाप्त हो जाने के बावजूद सरकारी बंगलों व सुविधाओं को नहीं त्यागते। हालांकि एक सुरक्षा एजेंसी के अनुसार वह सुरक्षा और अन्य प्रोटोकाल का हकदार हो सकता है। हालांकि इस संबंध में सरकारों, शासन, प्रशासन द्वारा सरकारी आवासीय स्थान खाली कराने की कार्रवाई की जाती है परंतु इतनी कड़ाई नहीं की जाती जितनी होनी चाहिए और मामला अधर में लटक जाता है और सरकारें बदल जाती है और समय का पहिया ऐसे ही घूमता चला जाता है।.... इसी विषय से संबंधित एक मामला जम्मू व कश्मीर हाईकोर्ट द्वारा स्वतःसंज्ञान से रिट पिटीशन जनहित याचिका रिट पिटीशन (सिविल) क्रमांक 24/2020 दाखिल की गई जो एक आदेश दिनांक 27 अक्टूबर 2020 के पारित आदेश के आधार पर थी। याचिकाकर्ता हाईकोर्ट स्वत संज्ञान बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के रूप में गुरुवार दिनांक 18 फरवरी 2021 को हाईकोर्ट में माननीय 2 जजों की बेंच जिसमें माननीय न्यायमूर्ति अली मोहम्मद मागरे तथा माननीय न्यायमूर्ति विनोद चटर्जी की बेंच के सम्मुख आया जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य बनाम मीर सैफुल्लाह के आदेश में पारित तथा प्रहरी बनाम सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के संबंध में 12 नवंबर 2020 को प्रतिवादी जम्मू-सरकार को नोटिस जारी कर ऐसी संपत्तियों की जानकारी मांगी गई थी और स्टेट विभाग ने 26 नवंबर 2020 को रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें पैराग्राफ 5 से 8 महत्वपूर्ण थे और पीआईएल दाखिल की गई। सुनवाई के बाद माननीय बेंच ने अपने 6 पृष्ठों के आदेश में पॉइंट नंबर 5 में कहा कि,यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ पूर्व उच्च अधिकारी और राजनेता शासकीय आवासीय व्यवस्था में अनाधिकृत रूप से बने हुए हैं, जिसके वे हकदार नहीं है आदेश कॉपी के अनुसार बेंच ने कहा कि सरकारी बंगले/सरकारी आवास जैसे प्राकृतिक संसाधन, सार्वजनिक भूमि और सार्वजनिक सामान देश के लोगों की सार्वजनिक संपत्ति हैं। बेंच ने जम्मू और कश्मीर सरकार को निर्देश दिया कि वहअनधिकृत/अवैध निवासियों (पूर्व मंत्रियों,विधायकों, सेवानिवृत्त अधिकारियों और राजनेताओं सहित) को सरकारी आवास से और किराए की वसूली से बाहर निकालने के लिए सभी कदम उठाए। उल्लेखनीय रूपसे,बेंच ने भी टिप्पणी की, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ पूर्व मंत्रियों/विधायकों/सेवानिवृत्त अधिकारियों/राजनेता/राजनीतिक व्यक्ति आदि ने अवैध रूप से/अनधिकृत रूप से उन्हें जम्मू और कश्मीर सरकार द्वारा प्रदान की गई आवासीय व्यवस्था में बने रहने में सफल रहे हैं, हालांकि अब वे ऐसे आवास के हकदार नहीं रह गए हैं। अदालत में पहले ही था मामला- न्यायालय 27 अक्तूबर, 2020 दिनांकित आदेश के अनुसार अपने ही प्रस्ताव पर न्यायालय द्वारा पंजीकृत 'जनहित' में रिट याचिका की सुनवाई कर रहा था, जो जम्मू और कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र में पूर्व अनुसूचित जातियों द्वारा सरकारी आवास के अनधिकृत/अवैध कब्जे के विषय के इर्दगिर्द घूमता है। इसके अतिरिक्त संघ राज्य क्षेत्र की सरकार द्वारा न्यायालय को सूचित करते हुए एक रिपोर्ट दायर की गई कि न्यायालय ने विधि के अधिदेश और क्षेत्र को शासित करने वाले नियमों के अनुसार अवैध/अनधिकृत कब्जे वाले (पूर्व मंत्री/विधायक/सेवानिवृत्त अधिकारी/राजनेता/राजनीतिक व्यक्ति) को बेदखल करने की प्रक्रिया जारी रखी है। न्यायालय की टिप्पणियां - यह टिप्पण करते हुए कि ऐसे बहुत से व्यक्ति उनके द्वारा पहले अभिनिर्धारित पद (कार्यालयों) के अनुरूप आवासीय आवास पर कब्जा करना जारी रखते हैं और जो उनके वर्तमान पात्रता से परे हैं, न्यायालय ने कहा, अनाधिकृत निवासियों को यह एहसास होना चाहिए कि अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे के साथ सम्बद्ध होते हैं, क्योंकि एक व्यक्ति के अधिकार दूसरे व्यक्ति के कर्तव्यों को आवश्यक बनाते हैं, जबकि एक व्यक्ति के कर्तव्यों में दूसरे व्यक्ति के अधिकार निहित होते हैं। अदालत ने आगे टिप्पणी की,इस संदर्भ में, अनधिकृत निवासियों को इस तथ्य की सराहना करनी चाहिए कि उनके आधार पर अधिक्रमण का कार्य दूसरे के अधिकार का उल्लंघन करता है, अननुज्ञात लोगों में आत्मानुशासन के इस कृत्य को कोई कानून या दिशा पूरी तरह नियंत्रित नहीं कर सकती विशेषकर, न्यायालय ने यह भी विचार किया कि न्याय और निष्पक्षता की अवधारणाओं से उभरने वाले 'समानता के सिद्धांत' को राज्य को उसी के वितरण/आबंटन में मार्गदर्शन करना चाहिए। अदालत ने कहा,कोई पूर्व मंत्री/विधायक/सेवानिवृत्त अधिकारी/राजनेता/राजनैतिक व्यक्ति, जब वह अपने पद को समर्पित कर देता है, आम नागरिक के समकक्ष है, हालांकि उसके पद पर धारण होने के कारण वह संबंधित कानूनी एजेंसी के आकलन के अनुसार सुरक्षा और अन्य प्रोटोकालो का हकदार हो सकता है। लेकिन ऐसे लोगों के जीवनकाल में सरकारी बंगले का आवंटन समानता के संवैधानिक सिद्धांत से नहीं होगा। संबंधित समाचार-जम्मू एवं कश्मीर एचसी की एक खंडपीठ ने 2019 में ठाकुर रणधीर सिंह वी। जम्मू और कश्मीर और ओआरएस राज्य में था। अभिनिर्धारित किया गया कि सरकारी आवास का आबंटन, चाहे वह सरकारी कर्मचारी हो, मंत्री हो या एक विधायक, को यह आवश्यक है कि वह सरकारी हैसियत/हैसियत बनाए रखने के लिए समाप्त होने के बाद दिए गए आवास को रिक्त कर दिया जाए। उच्चतम न्यायालय ने लोक प्रहरी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में स्पष्ट रूप से यह भी कहा है कि इन लोगों को सरकारी मकान आवंटित नहीं किए जा सकते। दिसंबर 2020 में जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के मौजूदा निदेशों में पूर्व मुयमंत्री, विधायकों, सांसदों, नौकरशाहों और गैर-सरकारी लगों को सरकार के रहने की अनुमति देने के लिए केंद्रीय राज्य क्षेत्र के सरकारी अधिकारियों की फटकार लगाई।
-संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एड किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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