दुर्लभ बीमारी से पीड़ित बच्चों को इलाज के लिए केवल अत्यधिक कीमती उपचार या दवा के कारण वंचित नहीं किया जा सकता - हाईकोर्ट | #NayaSaberaNetwork

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नया सबेरा नेटवर्क
बच्चों व बुजुर्गों को स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति में प्राथमिकता जरूरी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - वर्तमान समय में हम देख रहे हैं कि जितनी तीव्र गति से विश्व भर में स्वास्थ्य तकनीकी का विकास हुआ है, उतनी ही तीव्र गति से स्वास्थ्य संबंधी विपत्तियों का भी प्रहार हुआ है। ऐसी बीमारियों या तकलीफों ने प्रहार किया है जिसके बारे में हमें पता भी नहीं था। अभी कोरोना महामारी की वैक्सीन लगाना प्रथम चरण में चालू है और दूसरी ओर बर्ड फ्लू का कहर अपनी आगाज कर रहा है, हालांकि अभी पूरी तरह से पुष्टि नहीं हुई है पर सबूत मिल रहे हैं ऐसा प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की खबरों में से पता चलता है। दूसरी ओर ऐसी अनेक और बीमारियां है जिनका हमला कम इम्यूनिटी पावर वाले मनुष्यों पर होता है जैसे बच्चे वह बुजुर्ग हमने देखे कि कोरोना महामारी में भी बच्चों और बुजुर्गों की स्वास्थ्य सुरक्षा व सतर्कता पर बल दिया गया था और हो भी क्यों न? क्योंकि बच्चे हमारे देश का भविष्य है और बुजुर्ग हमारे देश के मार्गदर्शक।अतः दोनों को स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति से बिल्कुल वंचित या कमी नहीं करना होगा चाहे वह कितनी भी महंगी कयों न हो।... इसी से संबंधित एक मामला,मंगलवार दिनांक 12 जनवरी 2021 को माननीय दिल्ली हाईकोर्ट के एक सिंगल बेंच जज माननीय न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह के सम्मुख एक रिट पिटिशन (सिविल) क्रमांक 5315/2020 और सीएम अपील 19189/2020 याचिकाकर्ता बनाम भारत सरकार व अन्य के रूप में आया माननीय बेंच ने अपने 6 पृष्ठों और 9 पॉइंटों के आदेश में कहा कि दवा या उपचार की अत्यधिक कीमत के कारण दुर्लभ बीमारी से पीड़ित बच्चों को इलाज से वंचित नहीं किया जा सकता है।ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए दायर दो याचिकाएं पर माननीय बेंच ने यह टिप्पणी की। कोर्ट ने दोनों याचिकाओं पर एक सामान्य फैसला देकर भारत संघ और केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को निर्देश जारी किया कि दुर्लभ रोगों के लिए मसौदा स्वास्थ्य नीति 2020 के कार्यान्वयन को जल्द से जल्द अंतिम रूप दें याचिकाकर्ताओं ने दवा के महंगे दामों से व्यथित होकर याचिका दायर की थी, जिसमें भारत संघ, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से यह सुनिश्चित कराने के लिए निर्देश मांगे गए थे कि याचिकाकर्ताओं को मुफ्त इलाज दिया जाए, क्योंकि वे नहीं म‌हंगी दवा का इंतजाम नहीं कर सकते हैं। एक याचिका में (मास्टर अर्नेश शॉ), भारत संघ ने हलफनामा दिया था, जिसमें कहा गया था कि दुर्लभ रोगों के लिए एक मसौदा स्वास्थ्य नीति 2020 में जारी की गई है, जो अभी परामर्श के चरण में है। यह भी कहा गया कि 2017 की पूर्व नीति सरकार द्वारा लागू नहीं की गई थी। इसलिए, इसे देखते हुए, हाईकोर्ट ने दिनांक 07.08.2020 के आदेश के तहत, याचिकाकर्ता की स्वास्थ्य स्थितियों को देखते हुए एम्स को एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। रिपोर्ट में यह बताया गया था कि बच्चे को एक्सॉन्डिस 51 थेरेपी दिए जाने के बावजूद उसमें सुधार की संभावना नहीं दिख रही है। हालांकि, रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया था कि कि मामले में अंतिम अनुशंशा दुर्लभ रोगों के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की केंद्रीय तकनीकी समिति द्वारा द्वारा ली जाएगी।फैसला- पीठ ने बच्चों की स्वास्थ्य स्थितियों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए कहा कि,दवा या उपचार के अत्यधिक महंगा होन के कारण दुर्लभ बीमारी से पीड़ित रोगियों, विशेष रूप से बच्चों को इलाज से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।न्यायालय ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सुविधाओं का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है। सामान्य रूप से यह समाज की और विशेष रूप से अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि ऐसे बच्चों के जीवन से समझौता नहीं हो। अदालत ने फैसले में आगे दुर्लभ बीमारियों के लिए मसौदा स्वास्थ्य नीति का विश्लेषण किया, जिसमें यह पाया गया कि ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) को दुर्लभ बीमारियों में से एक माना जाता है, जिसमें उपचार की उच्च लागत शामिल है। न्यायालय ने न‌ीति के समूह 3 का भी विश्लेषण किया, जिसके तहत विशेष रूप से कहा गया है कि डीएमडी के उपचार की लागत बहुत अधिक है। नीति में यह प्रस्तावित किया गया था कि समूह 3 के अंतर्गत आने वाली बीमारियों के लिए उपचार पाने वाले रोगियों और उपचार में सहयोगी संभावित दाताओं को एक साथ जोड़ने के लिए एक डिजिटल मंच बनाया जाना चाहिए। यह भी कहा गया था कि इस प्रकार कि ऑनलाइन प्रणाली के जरिए,दानदाता रोगियों का विवरण देख सकेंगे और किसी विशेष अस्पताल में धन दान कर सकेंगे। इससे समाज के विभिन्न वर्गों के दानदाता दान कर सकेंगे, जिसका उपयोग उपचार के लिए किया जाएगा। न्यायालय ने कहा कि उक्त नीति को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया को अनिश्चित काल तक लंबित नहीं रखा जा सकता है, जैसा कि 2017 की पूर्व नीति के साथ किया गया था, विशेषकर ऐसे मामलों में जहां आम मानव जीवन दांव पर है। निर्देश इसलिए, न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया-स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा दुर्लभ रोगों के लिए बनी मसौदा स्वास्थ्य नीति को अंतिम रूप देने और अधिसूचना के लिए एक विशिष्ट समयरेखा बनाई जाएगी। मंत्रालय याचिकाकर्ताओं के इलाज के लिए संभावित व्यक्तियों,कॉर्पोरेट दाताओं और स्वतंत्र संगठनों के माध्यमसे क्राउडफंडिंग विकल्प की तलाश करेगा। मंत्रालय दवा निर्माता अमेरिकी कंपनी से संपर्क करेगा। मंत्रालय अगले 10 दिनों के भीतर एक प्रस्ताव लेकर आएगा। मामले की अगली की सुनवाई 28 जनवरी 2021 को होगी।
संकलनकर्ता कर विषेशज्ञ एड किशन भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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