राजनेता के साथ शिक्षाविद् भी थे आचार्य नरेंद्र देव | #NayaSaberaNetwork

सीतापुर के जाने माने वकील बलदेव प्रसाद के घर 31 अक्टूबर 1889 को बालक अविनाशी का जन्म हुआ जो आगे चलकर महान समाजवादी विचारक, शिक्षाशास्त्री और देशभक्त स्वत्रंता सेनानी आचार्य नरेंद्र देव हुए।
         आचार्य नरेंद्र देव भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सक्रीय सदस्य थे और सन 1916 से 1948 तक ‘ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी’ के सदस्य भी रहे।
      आचार्य जी के पिता बड़े धार्मिक प्रवित्ति के इंसान थे और राजनीति में भी दिलचस्पी लेते थे जिसके कारण उनके घर पर  स्वामी रामतीर्थ, पंडित मदनमोहन मालवीय, पं॰ दीनदयालु शर्मा आदि का जाना आना लगा रहता था और आचार्य जी को इनके संपर्क में आने का मौका मिला और धीरे-धीरे इनका मन देश की सामाजिक और राजनैतिक दशा की ओर प्रेरित होने लगे।

राजनेता के साथ शिक्षाविद् भी थे आचार्य नरेंद्र देव | #NayaSaberaNetwork


         इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए करने के बाद नरेंद्रदेव पुरातत्व के अध्ययन के लिए काशी के क्वींस कालेज चले गए और उसके बाद संस्कृत से एम.ए. पास किया।
      उनका पिता वकील थे घर वाले उन पर वकालत करने का जोर देने लगे परन्तु नरेंद्रदेव का मन वकालत करने का नहीं था लेकिन कुछ समय बाद इन्हे लगा कि वकालत करने के साथ-साथ राजनीति में भी अपना ध्यान दे सकते है इस विचार के कारण वकालत किए और वकालत की पढ़ाई के बाद उन्होंने 1915-20 तक पाँच वर्ष फैजाबाद जिले में वकालत की। इसी दौरान अंग्रेजी सरकार के विरोध में असहयोग आंदोलन प्रारंभ हुआ जिसके बाद नरेंद्रदेव ने वकालत छोड़ दिया और काशी विद्यापीठ चले गए जहाँ जाकर उन्होंने आचार्य रूप में कार्य करने लगे और यही से उनके नाम के साथ आजीवन आचार्य शब्द जुड़ गया, बाद में आचार्य जी काशी विद्यापीठ के कुलपति भी बने और बाद में लखनऊ के कुलपति के रूप में भी अपनी सेवा लखनऊ विश्वविद्यालय को दिया।
         आचार्य जी 1916 से लेकर 1948 तक ‘ऑल इंड़िया कांग्रेस कमेटी’ के सदस्य भी रहे और 1930 के नमक सत्याग्रह, 1932 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया और जेल की यातनाएँ भी सहीं। 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाए।
        आचार्य जी को संस्कृत, हिन्दी के अलावा अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी, पाली, बंगला, फ़्रेंच और प्राकृत भाषाओँ का बहुत अच्छा ज्ञान था। आचार्य जी शिक्षाविद् के साथ एक अच्छे लेखक और पत्रकार भी थे, उन्होंने त्रैमासिक पत्रिका विद्यापीठ, मासिक पत्रिका जनवाणी और समाज,संघर्ष नामक सप्ताहिक पत्र-पत्रिकाओं के संपादन में कार्य किए। साथ ही साथ उनका विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखते रहें और आचार्य नरेन्द देव उच्च कोटि के वक्त भी थे।
       आचार्य जी ने कांग्रेस को समाजवादी विचारों की ओर ले जाने के उद्देश्य से सन 1934 में आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में 'कांग्रेस समाजावादी पार्टी' का गठन हुआ, जिसके सचिव जयप्रकाश नारायण थे, कुछ समय बाद कांग्रेस द्वारा यह निश्चय करने पर की उसके अंदर कोई अन्य दल नहीं रहेगा पर आचार्य जी ने कांग्रेस समाजवादी पार्टी के अपने साथियों के साथ कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। कांग्रेस पार्टी छोड़ने के साथ ही कांग्रेस पार्टी के टिकट पर जीती विधान सभा सीट से त्याग-पत्र देकर इन्होंने राजनीतिक नैतिकता का एक नया आदर्श उपस्थित किया था। जो कि वर्तमान नेताओ के लिए बहुत बड़ा उदाहरण है।
           विद्वत्ता के साथ ही विनोदप्रियता भी नरेंद्र देव के स्वभाव में गजब की थी. कहते हैं, एक बार पंडित गोबिन्द बल्लभ पन्त जी के साथ आचार्य जी अपनी गली से गुजर रहे थे। गली में गधों को देखकर पंडित पन्त बोले – "आचार्य जी ! आपकी गलियों में गधे बहुत हैं।" आचार्य नरेन्द्र देव ने उत्तर दिया –“पन्त जी गधे रोज नहीं रहते, कभी कभी आ जाया करते हैं।" एक ठहाके के साथ दो पल के लिए माहौल में हंसी भी तैरने लगी।
      पूर्व प्रधानमंत्री चंदशेखर जी आचार्य नरेंद्र देव के राजनैतिक शिष्य रहे एक कथित घटना के अनुसार इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से राजनीतिक शास्त्र में मास्टर डिग्री (एम.ए) करने के बाद चंदशेखर जी पीएचडी डिग्री के लिए काशी विद्यापीठ गए वहां उनसे मुलाकात तत्कालीन कुलपति आचार्य जी से हुई और वो आचार्य जी से काफी प्रभावित हुए और आचार्य जी ने कहा कि आप जैसे पढ़े लिखे युवाओं को देश की राजनीतिक में जरूरत है आप देश की राजनीतिक पर ध्यान दे, फिर चंदशेखर जी आचार्य जी से प्रभावित होकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गए।
                  आचार्य जी जीवन पर्यन्त दमे के मरीज रहे। इसी रोग के कारण 19 फ़रवरी, 1956 ई. को मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में उनका निधन हो गया।
         आचार्य नरेंद्र देव की स्पष्ट राय थी कि हमें अपने नवयुवकों को ऐसा बनाना होगा कि धार्मिक द्वेष और शत्रुता का संप्रदाय उन पर असर न डाल सके। उन्हें लोकतंत्र और अखंड मानवता के आदर्शों की दीक्षा देनी होगी, तभी हम सांप्रदायिक सामंजस्य स्थापित कर सकेंगे। देश के युवाओं को आचार्य जी के आदर्शपूर्ण जीवन और सिद्धांतों को अनुकरण करने की जरूरत है।

राजनेता के साथ शिक्षाविद् भी थे आचार्य नरेंद्र देव | #NayaSaberaNetwork
अंकुर सिंह 
चंदवक, जौनपुर, 
उत्तर प्रदेश-22129
मोबाइल नंबर - 8367782654.
व्हाट्सअप नंबर - 8792257267

*Ad : MBBS करने का शानदार Offer | Admissions Open | Contact - Meraj Ahmad Mo. 9919732428, Dr. Danish Mo. 8700399970*
Ad

*Advt : वाराणसी खण्ड शिक्षा निर्वाचन क्षेत्र से रमेश सिंह प्रांतीय उपाध्यक्ष उ.प्र.मा​.शि.सं. के नाम के सामने वाले खाने में 1 लिखकर प्रथम वरीयता मत देकर शिक्षकों की आवाज बुलंद करने हेतु विधान परिषद भेजने की कृपा करें।*
Advt.

*Ad - Happy Dussehra : 20% OFF On Dussehra Special | Order Now 9519149797 | Pizza Paradise : Wazidpur Tiraha Jaunpur*
Ad



from NayaSabera.com

Post a Comment

0 Comments